Book Title: Bhaktamar Katha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay
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बिम्बंरवेरिवपयोधरपार्श्ववति ॥२८॥ 1.! संपत्तिसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।
ही ही हीं
स्पष्टोलसत्किररामस्ततमो वितानं जंभय मोहय मोहय सर्वसिद्धि -ही ही ही ही हों
ही-हीं ही ही -हीं नहींअहरामोमहातवाराऊनमो उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूरव
।
॥यत्र २८॥
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हीं ही -हीं भगवते जयविजय श्रृंभुय मानातिरूपममतं भवतोनित्तान्तम्।
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