Book Title: Bhaktamar Katha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay

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Page 143
________________ १३४ भक्तामर-कथा। mmmmmm फल-ऋद्धिमंत्र जपने और यंत्र पास रखनेसे धनलाभ होता है, और हाथीं क्शमें होता है। ऋद्धि-ॐ हीं अहँ णमो वचवलीणं । मंत्र-ॐ नमो एषु वृत्तेषु वर्द्धमान तव भयहरं वृत्तिवर्णा येषु मंत्राः पुनः . स्मर्तव्या अतोना परमंत्रनिवेदनाय नमः स्वाहा । __ फल--ऋद्धिमंत्र जपने और यंत्र पास रखनेसे सर्प और सिंहका भय नहीं रहता तथा भूली हुई रास्ता मिल जाती है। __ऋद्धि--ॐ हीं अहँ णमो कायवलीणं । मंत्र--ॐ हीं श्रीं क्लीं हां ही अग्निमुपशमनं शान्ति कुरु कुरु स्वाहा । विधि-ऋद्धि मंत्र द्वारा २१ बार पानी मंत्रकर घरके चारों ओर छींटने और यंत्र पास रखनेसे अग्निका भय मिट जाता है। ४१ ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो खीरसवीणं । मंत्र-ॐ नमो श्रां श्रीं श्रृं श्रौं श्रः जलदेविकमले पद्महृदनिवासिनी पद्मोपरिसंस्थिते सिद्धिं देहि मनोवाञ्छितं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धिमंत्रके जपने और यंत्रके पास रखनेसे राजदरबारमें सम्मान होता है और झाड़ा देनेसे सर्पका विष उतरता है । कांसेके कटोरेमें १०८ दफे मंत्रकर पानी पिलानेसे विष उतर जाता है। . ४२ ऋद्धि--ॐ ही अहं णमो सप्पिसवाणं । मंत्र-ॐ नमो णमिऊण विषधर-विषप्रणाशन-रोग-शोक-दोष-ग्रह-कप्पदु. मच्चजाई सुहनामगहणसकलसुहदे ॐ नमः स्वाहा। फल-ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे युद्धका भय नहीं रहता। ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो महुरसवाणं । मंत्र-ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिनशासनसेवाकरिणी क्षुद्रोपद्रवविनाशिनी धर्मशान्तिकारिणी नमः कुरु कुरु स्वाहा।

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