Book Title: Bhaktamar Katha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay

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Page 123
________________ ११४ भक्तामर कथा । रणधीरने न्याय, व्याकरण, साहित्य, मंत्र शास्त्र आदि सब विषयोंके बहुत अच्छे विद्वान् अपने गुणचंद्र गुरुके पास भक्तामरका अचिन्त्य प्रभाव सुन कर मूल सहित उसके मंत्रोंके साधने की विधि सीख ली । अजमेर के पास एक पलाशखेट नामका छोटासा पर बहुत रमणीय नगर था । उसके शासनका भार नरपालने अपने रणधीर पुत्रको सौंप रक्खा था । अजमेरका कोट बहुत ऊँचा था - अजेय था । इसलिए योगिनीपुरके बादशाह सुलतानने अजमेर पर चढ़ाई करना अच्छा न समझ दूसरे उपायसे अजमेर राज्यको अपने वश कर लेने के लिए पलाशवेंट पर चढ़ाई करदी । उस समय रणधीर बेखबर था, इस कारण सुलतान अपनी अपार सेना के बलसे रणधीरको जीता पकड़ कर उसे अपने शहर में ले आया और लोहेकी साँकलोंसे बाँध कर उसे उसने कैदखाने में डलवा दिया । उस समय रणधीर बड़ी श्रद्धा और भक्तिके साथ जिन भगवान की आराधना और 'आपादकंठमुरुशृंखलवेष्टिताङ्गा ' इस श्लोक के मंत्रका साधन करने लगा | मंत्र के प्रभावसे चक्रेश्वरीने आकर उसके सब बन्धन काट दिए । रणधीर बन्धन - रहित होकर सुलतान के सामने आ खड़ा हुआ । सुलतान उसे मुक्त हुआ देखकर आश्चर्यमें आ गया । उसने उसके छूट आने में अपने नौकरोंकी सहायता समझ कर उसे फिर बाँध कर कैदखाने में डलवा दिया और अबकी बार उसकी रक्षाका खास प्रबंध किया। पर फिर भी उसका सब प्रयत्न निष्फल गया और रणधीर झटसे छूट कर निकल आया । तब सुलतान उसे मंत्र-तंत्रका जानकार समझ कर बड़ा घबराया । उसने रणधीर से अपने अपराधकी क्षमा कराकर उसका बहुत सन्मान किया और खूब वस्त्राभूषण, धन, रत्नादि वगैरह भेंट देकर उसे उसकी राजधानीमें लौटा दिया ।

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