Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 135
________________ ( १११ ) मान जाते हैं । E १० - जैसे प्राणधारियों में आंत होती है, वैसे फलों में भी आंतें मानी गयी हैं। जिनके द्वारा फल में रहे हुए बीज के शिराओं, गूदे मेदस् को रस पहुँचता है; उन रेशों को वैद्य लोग अन्त्र कहते हैं । सुश्रुत संहिता में इनसे भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है, जो नीचे दिया जाता है । १० चूतफले परिपक्व केशर -मांसा - ऽस्थि-मज्जानः बृश्यन्ते, कालप्रकर्षात् । तान्येव तरुणे नोपलभ्यन्ते, तेषां सूक्ष्माणां केशरादीनां कालः प्रव्यक्ततां करोति । ( सुश्रुत संहिता शा० आ० ३ श्लो० ३२ ) अर्थ - पके आम के फलों में केशर, मांस, अस्थि मज्जा प्रत्यक्ष पृथक-पृथक सूक्ष्मत्वात् । ( गरक) और कफ़ करने वाली होती है । ९-स वा एष पशुरेवालभ्यते, यत् पुरोडाशस्तस्य किशारूणि तानि मणि, ये तुवाः सा त्वक्, ये फलीकरणास्तव, यत् पृष्ठं किकुनसाः, यत् सारं तन्मांस, यत्किञ्चित् कंसारं तदस्थि, सर्वेषां वा एव पशूनां मेधेन यजते तस्मादाहुः पुरोडाशसत्रं लोक्यमिति (द्वितीय पञ्जिका अ० पृ०११५ ) अर्थ: - यह पशु का ही आलभन किया जाता है, जो पुरोडाश तैयार करते हैं (उस में ) यव व्रीहि पर जो किशारू (शूक) होते हैं, वे इन के रोम हैं, इन पर जो तुष है वह इनका चर्म हैं, जो फलीकरण है वह इनका रुषिर है, जो पृष्ठ है वह इसकी रीढ़ है, इसका जो कुछ सार भाग है वह मांस है, इनका जो कसार ( ऊपर का कठोर भाग) है वह अस्थि है, जो इस पुरोडाश से यज्ञ करता है, वह सब पशुओं से यज्ञ करता है। इस वास्ते पुरोडाश को लोकहितकारी सत्र कहते हैं । १० -- समुत्सृज्य ततो बीजान, अन्त्राणि तु समुत्सृजेत् । तानि प्रक्षाल्य प्रक्षाल्य तोयेन प्रवण्यां निक्षिपेत् पुनः ॥ ( पाकदर्पण पु० २५) अर्थ — उसमें से बीज तथा आंतें निकाल दें, फिर उसे धो डालें और - बाद में प्रवणी में रखे ।

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