Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 158
________________ ( १३४ ) "अगस्त्या बंगसेनो, मशिप निमः । अगस्त्यः पित्तकफजिच्चातुर्षिकहरो हिमः। सत्पयः पीनसश्लेष्मपित्तनस्तान्ध्यनाशनम् ॥" (मदनपाल निघष्ठ) अर्थ :- अगस्त्य बंगसेन, मधुशिग्रु, मुनिद्रुम इन नामों से पहचाना जाता है । अगस्त्य पित्त और कफ को जीतने वाला है। चतुर्थिक ज्वर को दूर करता है और शीतवीर्य है। इस का स्वरस प्रतिश्याय श्लेष्म राश्यान्ध्य नाशक है। "मुनिशिम्बी सरा प्रोक्ता, बुद्धिवा रुचिदा लघुः । पाककाले तु मधुरा, तिक्ता चंब स्मृतिप्रदा ॥ त्रिदोषशलकफहत्, पाण्डुरोगविषापनुत् । श्लेष्म-गुल्महरा प्रोक्ता, सा पक्वा लक्षपित्तला ॥" (शालिग्राम निघण्ट) अर्थ-अगस्ति की शिम्बा सारक कही है, बुद्धि देने वाली, भोजन की पचि उत्पन्न करने वाली, हल्की, पाक काल में मधुर, तीखी, स्मरणशक्ति बढ़ाने वाली, त्रिदोष को नाश करने वाली, शूलरोग, कफरोग को हटाने वाली, विष को नष्ट करने वाली और श्लेष्म गुल्म को हटाने वाली होती . है, परन्तु पकी हुई शिम्बा रूक्ष और पित्त करने वाली होती है। (२) कुक्कुट अर्थात सुनिषण्णक (चौपत्तिया भाजी), मधुकुक्कुटी अर्थात् जम्बीर फल आदि है; इनके गुणदोषों का विवरण इस प्रकार है :(कुक्कुट) "सुनिषण्णो हिमो ग्राही मोहदोषत्रयापहः । अविवाही लघुः स्वादुः कषायो रूक्षवीपमः ॥ वृष्यो हच्यो ज्वर-श्वास-मेह-कुष्ठ-भ्रम प्रणत् (भावप्रकाश) अर्थ--सुनिषण्णक (चौपत्तिया भाजी) ण्डी, दस्त रोकने वाली, मोह तथा त्रिदोष को नाश करने वाली, दाह को शांत करने वाली, हल्की, स्वादिष्ट, कषाय रस वाली, रूक्ष, अग्नि को बढ़ाने वाली, बल तथा रुचिकारक, ज्वर, श्वास, प्रमेह, कुष्ठ और भ्रम को नाश करने वाली है।

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