Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ शब्द का "अच्छा भोजन", यह अर्थ भूला जा चुका था। यही कारण है कि उक्त पदार्थों को आमिष का नाम देकर वजित बताया गया है। (मा० भो० मी०, क० वि०) (२) आयुर्वेद, जैन तथा बौद्व आदि के प्राचीन ग्रंथों मे आमिष, मास, मत्स्य, आस्विक आदि शब्दों का प्रयोग वनस्पत्यगों तथा पक्वान्नो आदि खाद्य पदार्थों के लिये किया गया मिलता है। इसका विवेचन हम द्वितीय खण्ड मे विस्तृत कर' आये हैं । तत्पश्चात धीरे-धीरे इन शब्दों का प्रयोग प्राण्यंगों, स्थल १. पचामाग भगवतीसूत्र में इस चर्चास्पद सूत्र पाठ के वनस्पतिपरक अर्थ के समान ही आचाराग, दशवकालिक आदि के चर्चास्पद सूत्र पाठो के भी वनस्पतिपरक अर्थ है। जैनागमों में आये हुए चर्चास्पद शब्दो के प्राण्यगों के अतिरिक्त निरामिष अर्थ प्राचीन भारतीय साहित्य से सप्रमाण यहाँ दिये जाते हैं : ये शब्द अटिठ, अट्ठिय, आमिष, कटय, मच्छ, मंस, मज्ज आदि हैं। अर्द्धमागधी सस्कृत निरामिषार्थ १ अछि अम्थि बीज, गुठली, लकडी कौटिलीय अर्थशास्त्र पृ० ११८, सुश्रुत संहिता, वृहदारण्योपनिषद् २. अयि १. अस्थिक बाज न बना हो सा १. जिममें बीज न बना हो सा वृहः १ अपरिपक्व फल, गुठली वाले पण्णवणा सूत्र बेर, आम आदि फल २. आर्थिक २. मोक्ष का कारण उत्तराध्ययन १ ३. आमिम आमिप १. आहार, फलादि भोज्य वस्तु पंचा०६

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200