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शताब्दी के बाद मास शब्द जो पिष्ट से निष्पन्न मिष्टान्न तथा फल गर्भ के अर्थ में प्रयुक्त होता था, वह धीरे-धीरे भूला जाने लगा। ईसा की प्रथम शताब्दी से पूर्व निर्मित जैनागमों तथा प्रकीर्णकों में मांस आदि शब्द वनस्पत्यंग तथा पक्वान्नों के अर्थ में ही प्रयुक्त हुए हैं। इसके बाद के जैन ग्रंथों में मांस और पुद्गल शब्दों का प्रयोग प्राण्यंग मांस के रूप में भी प्रयुक्त होने लगा।
(३) जैनागमों में आये हुए विवादास्पद सूत्र पाठों का वास्तविक अर्थ समझने के लिये यह आवश्यक है कि जनागमों की रचना का इतिहास भी जाना जाय ताकि स्पष्टार्थ समझने में सुगमता प्राप्त हो।
उत्तराध्ययन १ आचारांग २, १, ५ क्षेम कुतूहल
३. दु.खोत्पादक वस्तु ५. कंटय बोंदिया-कंटक शाखा १. काँटों वाली वृक्ष शाखा
१. मत्स्याकृति के बनाये हुए मच्छ मत्स्य
उड़द की पीठी के पक्वान्न, कोद्रव धान्य के तंदुल,
व्रीहि के तंदुल मादयति अनेन नशा करने वाले धान्य
इति मत्स्य । मच्छंडिया मत्स्यं डिका अण्ड शर्करा-एक प्रकार की
शक्कर ६. मंस मांस १. फलियों का गूदा, फल का
गूदा, मेवों का गूदा
कौटिलीय अर्थशास्त्र अ० २४ पृष्ठ ११७
पह० २, ४, णाया०
वृहदारण्योपनिषद् सुश्रुत संहिता,