Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 171
________________ ( १४७ ) मास के पक्ष में विरोधी है । इससे यह मान्यता निराधार हो जाती है। (३) उस समय भगवान् महावीर स्वामी की शारीरिक अवस्था कितनी गम्भीर थी, यह दिखलाये बिना कोसाम्बी जी की मान्यता को असंगत ठहराना कठिन था, इसलिये हमने इसका विस्तृत वर्णन कर स्पष्ट किया है। अतः जिनका शरीर छः महीनों से दाहज्वरअस्त हो, बाह्याभ्यन्तर तापमान बहुत चढ़ा हुआ हो और खन के दस्त हो रहे हों; एमी अवस्था में भगवान् महावीर अपने शिष्य निर्ग्रन्थ मुनि सिंह के द्वारा मुर्गीका बासी मास मंगा कर खाने की इच्छा करे, यह बात वंद्यों, डाक्टरों के सिद्धान्तों के एक दम विरुद्ध तो है ही, पर सामान्य मनुष्य की दृष्टि से भी भगवान् महावीर की यह प्रवृत्ति आत्मघातक ही प्रतीत होगी।

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