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११ - मार्जार १ - बराली, विरालिका, वरालक, वराल, लवङ्ग (वैद्यक शब्दसिन्धु ) ( अष्टांगसारसंग्रह) (वैद्यक निघण्टु २ भाग) | १२- वराल, वरालक ( हिन्दी विश्वकोष )
मार्जार- अर्थात् विरालिका ( लवंग) के कैसे अद्भुत गुण हैं वे नीचे के श्लोक में दिये जाते हैं :
"लवंगं कटुकं तिक्तं लघु नेत्रहितं हिमं । दीपनं पाचनं रुथ्यं कफपित्ताम्लनाशकृत् ॥ तृष्णा छदिस्तथाध्मानं शूलमाशु विनाशयेत् । कासश्वासश्च हिकारच भयं क्षपयति ध्रुवम् ॥ १॥
( वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ९०९)
अनेकार्य तिलक महोपकृत:
१. मार्जार शब्द के और भी अनेक अर्थ (पर्यायवाची शब्द ) अनेक कोशों और निघण्टुओं में उपलब्ध हैं, उनमें से यहां कुछ का उल्लेख कर देने से पाठकों की जानकारी में वृद्धि होगी
२. मार्जार = नक्षत्रे च त्रिशङ्कस्तु मार्जारे शलभे नृपे ।
तूलिका लेख्यलेखिन्यां
तुलतल्पशलाकयोः ॥ १३२ ॥
माकन्दो मन्मथे चूते मुकुन्दः पारदे हरी । विधौ तालेऽथ मेनादी मार्जारमेष के किनो : ॥२०७॥
नेत्रगोलेऽपि मार्जारे विहाय: ख-विहङ्गयोः । नुक्कसः श्वपचे नीचे विबुधः पण्डिते सुरे ॥ २४९ ॥
( खंड ३)
कृष्ण सार: स्नुहीवृक्षे शिशिपामृगभेदयो : । कुष्माण्ड कस्तु माजरे कुष्माण्डगणभेदयोः ॥४८॥ महोदयो नृपे मोक्षं मधुपर्णे पुरे रखो । मार्जाली यस्तु मार्जारे शूद्रे विग्रहशोधने ॥ १५४॥
( खंड ४ )
मार्जार- बिडाल, बिल्ली ( हिन्दी विश्वकोष)