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________________ ( १२९ ) ११ - मार्जार १ - बराली, विरालिका, वरालक, वराल, लवङ्ग (वैद्यक शब्दसिन्धु ) ( अष्टांगसारसंग्रह) (वैद्यक निघण्टु २ भाग) | १२- वराल, वरालक ( हिन्दी विश्वकोष ) मार्जार- अर्थात् विरालिका ( लवंग) के कैसे अद्भुत गुण हैं वे नीचे के श्लोक में दिये जाते हैं : "लवंगं कटुकं तिक्तं लघु नेत्रहितं हिमं । दीपनं पाचनं रुथ्यं कफपित्ताम्लनाशकृत् ॥ तृष्णा छदिस्तथाध्मानं शूलमाशु विनाशयेत् । कासश्वासश्च हिकारच भयं क्षपयति ध्रुवम् ॥ १॥ ( वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ९०९) अनेकार्य तिलक महोपकृत: १. मार्जार शब्द के और भी अनेक अर्थ (पर्यायवाची शब्द ) अनेक कोशों और निघण्टुओं में उपलब्ध हैं, उनमें से यहां कुछ का उल्लेख कर देने से पाठकों की जानकारी में वृद्धि होगी २. मार्जार = नक्षत्रे च त्रिशङ्कस्तु मार्जारे शलभे नृपे । तूलिका लेख्यलेखिन्यां तुलतल्पशलाकयोः ॥ १३२ ॥ माकन्दो मन्मथे चूते मुकुन्दः पारदे हरी । विधौ तालेऽथ मेनादी मार्जारमेष के किनो : ॥२०७॥ नेत्रगोलेऽपि मार्जारे विहाय: ख-विहङ्गयोः । नुक्कसः श्वपचे नीचे विबुधः पण्डिते सुरे ॥ २४९ ॥ ( खंड ३) कृष्ण सार: स्नुहीवृक्षे शिशिपामृगभेदयो : । कुष्माण्ड कस्तु माजरे कुष्माण्डगणभेदयोः ॥४८॥ महोदयो नृपे मोक्षं मधुपर्णे पुरे रखो । मार्जाली यस्तु मार्जारे शूद्रे विग्रहशोधने ॥ १५४॥ ( खंड ४ ) मार्जार- बिडाल, बिल्ली ( हिन्दी विश्वकोष)
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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