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अर्थात-लवंग कटु, तीक्ष्ण, लघु, चक्षुष्य, ठण्डा, दीपन, पाचक रुचिकर। कफ, पित्त, मल नाश करने वाला। तृष्णा (प्यास), वमन, आध्मानवायु, शूल के दर्द को शीघ्र नाश करने वाला। खांसी, श्वास, क्षय भादि रोगो को शीघ्र दूर करने वाला है। ___वैद्यक ग्रंथ आर्यभिषक - (शंकर दाजी पदे कृत) पृ० ३५९ में लिखा है कि :
लवंग लघु, कडवा, चक्षुष्य, रुचिकर, तीक्ष्ण, पाककाले मधुर, उष्ण, पाचक, अग्निदीपक, स्निग्ध. हृद्य, वष्य तथा विशद है; तथा वायु, पित्त, कफ, आम, क्षय, खामी, शूल, आनाहवायु, श्वास, उचकी, बाँति, विष, क्षतक्षय, क्षय, तृष्णा, पीनस, रक्तदोप, आध्मान वायु को नाश करता है।
आर्यभिषक् फट नोट पृ० ३५९-में लिखा है :
लवंग पेट की पीड़ा का नाशक, प्यास बन्द करने वाला, उल्टी तथा वायु आदि को दूर करने के लिये औषध रूप में दी जाती है। ___इन सब उद्धरणों से तथा टिप्पनी मे दिये गये उद्धरणों से स्पष्ट है कि “मार्जार" शब्द के बनस्पतिपरक अनेक अर्थ होते हैं। वायु तथा
मार्जार---रक्तचित्रक वृक्ष, लालचीता पेड़, खटास,
(हिन्दी विश्वकोश) बिडाल-हरिताल, यष्टी गरिक, सिन्धूत्थदातिाक्ष्यः समांशकैः ॥
(वाचस्पति बृहत्सस्कृताभिधान) मार्जार-तार्य-भूपाल-मार्जार-शलभाः स्युस्त्रिशङ्कवः ॥१२०७॥ मार्जारेऽपि पिशाचः स्याद मारीचो याचकद्विजे ॥१३३९।।
(नानार्थरत्नमालायां त्र्यक्षरकांड:) वरालक-Varalaka-cloves carissa carissa carandos
aromatic Spice-लवंग, सुगन्धित मसाला । (Sanskrit English Dictionary by Sir Monier MonierWilliams).