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परन्तु यहाँ पर मार्जार शब्द भी वनस्पति विशेष का नाम है, जिस वनस्पति की औषधि में शीतलता, वायुशमन आदि गुण लाने के लिये भावना या पुट दी जाती है। जिसका प्रभाव गर्मी (उष्णता दाह) इत्यादि
गों को शात करने में उपयोगी है। वैद्यक निघण्टुओं तथा जैनागमों में भी इसका ऐसी बनस्पति अर्थ किया गया है । प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद में वृक्षों के अधिकार में 'मज्जार' शब्द की व्याख्या इस प्रकार है :१--"वस्थुल-पोरग-मजार-पोइवलिय- पालक्का"।
(अनागम पन्नवगा सुत्तपद १ हरित विभाग) जैनागम भगवतीसूत्र २१ वे शतक में भी 'मज्जार' शब्द बनस्पति के अर्थ में आया है :--
२--"अब्भसह-बोयान-हरितग-संवुलेन्जण-सण-बत्युल-पोरग-मजारपाई-चिल्लिया।" (भगवतीसूत्र) ३-"मार्जार :-विरालिकाभिषानो वनस्पतिविशेषः।"
(भगवतीसूत्र शतक १५ टीका) ४-कृशरे-भोर मार्जार किंशुका इंगुवो न षण् । ___ अगस्त्य मुनि मार्जारावगस्तिबंगसेनकाः" ॥१५६॥
(जयन्ती भूमिकांड बनाध्याय) अर्थ-कृशर (हिंगोटी) के भीरू, मार्जार, किंशुक, इंगुदी ये नाम हैं । इंगुदी शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग में है। अगस्त्य के मुनि, मार्जार अगस्ति बंगसेन ये नाम है ।
५-"अगस्ति की शिम्बा सारक, बुद्धिदा, भोजन की रुचि उत्पन्न करने वाली, त्रिदोष नाशक इत्यादि अनेक गुणों वाली हैं"। (शालिग्राम)
६-मार्जार-रक्तचित्रक नामक पौधा (राजनिघण्टु) ।। ७--मार्जार---विडाली, भूमि कुषमाण्ड (वैद्यक शब्दसिन्धु पृ० ८८९)। ८-~मार्जार-बिल्ली (वनस्पति विशेष), विडालिका, वृक्षपर्णी । ९.-मार्जार--बटाश (क०स० श्री हेमचन्द्राचार्य) १०-मार्जार-एक प्रकार की वायु (भगवती टीका)