Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir उद्देश II Can |छे, दायाद (भायात) ने साधारण छ, अग्रिने सामान्य छे, यावद् दायादने सामान्य छे. वळी ते अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे. व्याख्या- ६ पहेलां के पछी ते अवश्य छोडवानुं छे, तो कोण जाणे छे के पहेला कोण जशे अने पछी कोण जशे ? इत्यादि बापत् हुं प्रव्रज्या प्रवतिः लेवाने इच्छु छु.' 11८४८॥ ना तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएन्ति विसयाणुलोमाहिं बहहिं आघवणादि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवेत्तए वा पन्नवेत्तए वासन्न वेत्तए वा विन्नवेत्तए वा ताहे विसहै यपडिकूलाहिं संजमभयुव्वेयणकराहिं पन्नवणाहिं पनवेमाणा एवं बयासी-एवं खलु जाया! निगंथे पावयणे सचे अणुत्तरे केवले जहा आवस्सए जाव सम्वदुक्खाणमंतं करेंति अहीव एगंतदिट्ठीए खुरो इव एगंतधाराए लोह| मया जवा चावयम्वा वालुयाकवले इव निस्साए गंगा वा महानदी पडिसोयममणयाए महासमुद्दे वा भुवाहिं दुत्तरो तिक्खं कमियध्वं गरुयं लंबेयव्वं असिधारग वतं चरियब, नो खलु कप्पइ जाया! समणाण निग्गंथाणं आहाकम्मिएत्ति वा उद्देसिएइ वा मिस्सजाएइ वा अज्झोयरएइ वा पूइएइ वा कीएइ वा पामिचेइ वा अच्छेन्जेद वा अणिसट्टेइ वा अभिहडेइ वा कंतारभत्तेइ वा दुन्भिवभत्तइ वा गिलाणभत्तेह वा वहलियाभत्तेइ वा पाहुण. गभत्तइ वा सेजायरपिंडेइ बा रायपिंडेइ वा मूलभोयणेइ वा कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा बीयभोयणेइ वा हरियभोयणेह वा भुक्षए वा पायए वा, तुमचणं जाया! सुहसमुचिए, णो चेव णं दुहसमुचिते, नालं सीयं नालं उण्हं नालं खुहा नालं पिपासा नालं चोरा नालं वाला नालं दंसा नालं मसया नालं वाइयपित्तियसेंभियसन्नि वालयाकवले इव प्रिसिधारगं वक्तं चरियइ वा पूहराइ वा कोरडा वाइलियाभत्तेह वा पाया । For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 235