Book Title: Bhagvati Sutra Part 05 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ शुद्धि-पत्र अशुद्ध पृष्ठ पंक्ति २१३६ २ २१४२ अंतिम २१४३१ २१४४ विस्तराद णो इंदियावउत्ता एक्का वाससयसहस्से जंवू दीवसमा उद्वर्तना अहम्मत्यिकायएसेहिं एव विस्तारादि णो इंदियोव उत्ता एक्को वाससयसहस्सेसु जंबूद्दीवसमा अंतिम अहम्मस्थिकायपएसेहि एवं १२ २१६५ २१९७ २२११ २२१३ २२२८ २२३३ २२७१ २२८२ २२८४ २२६५ २२९७ २३१७ २३३६ २३४९ २३६४ २३६९ २३७२ होते दिवड्ढे पुव्वरत्तावरत्त... आकाश अनंतरपरं.....भी अणंतरपरंपरअणिग्गया . ज्योतिषी नरयिकादि में दिवड़द पुवरत्तावरत्त.... आकश अनन्तर-परं..... अणंतरपरंपरणिग्गया. ज्योनिषी नैरयिकादि तक देवाणं पक्खिज्सेजा केललज्ञानी गोसा इन्द्रभति १४ देवा १२ १८ पक्लिवेज्जा केवलज्ञानी गोसालं इन्द्रभूति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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