Book Title: Bhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ आद्य मिताक्षर क्रान्तद्रष्टा जैन कवियों की दृष्टि सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय रही है । अतएव वे जनकल्याण को सर्वतोमुखी उदात्त भावना से सर्वभाषामयी जिनवाणी का हर भाषा के साहित्य में सर्वजन सुलभ प्रचार और प्रसार में सदा अग्रसर रहे। उसी श्रृंखला में महाकवि रहधू ने प्राकृत - गर्भज अपभ्रंश के माध्यम से भद्रबाहु, चाणक्य और चन्द्रगुप्त का, जिनका अन्तिम सम्बन्ध कटवप्र - श्रवणबेलगोला से हैं, वर्णन किया है । वह ग्रन्थ डॉ. राजाराम जैन, अध्यक्ष, संस्कृतप्राकृत विभाग ह० दा० जैन कालेज आरा ( बिहार ) के कुशल सम्पादन और भाषान्तरण से सर्वजन सुलभ प्रस्तुत हुआ देखकर सन्तोष हो रहा है । प्राकृत और अपभ्रंश भाषान्तर्गत जैन साहित्य का खोजपूर्ण प्रस्तुतीकरण डॉ. ए. एन. उपाध्ये और डॉ. हीरालाल के बाद इस कृति में उपलब्ध होता है । भद्रबाहु, चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सम्बन्ध श्रवणबेलगोल के कटवप्र-गिरि से ई. पू. ३६५ से रहा है । कालान्तर में कटवत्र का ही नाम चन्द्रगिरि से अभिहित होने लगा, जो वर्तमान में भी प्रचलित है । डॉ. राजाराम जैन अन्वेषण और संशोधन के माध्यम से जिनवाणी एवं समाज की सेवा करते आ रहे हैं । भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाणमहोत्सव पर भी इनका अच्छा सहयोग रहा । श्रवणबेलगोल में होनेवाले सहस्राब्दी प्रतिष्ठापना - महोत्सव एवं महामस्तकाभिषेक के सुसन्दर्भ में अद्यावधि अज्ञात, अप्रकाशित, अपभ्रंश भाषात्मक हस्तप्रति का सर्वप्रथम सम्पादन और प्रकाशन इनका बहुत ही महत्वपूर्ण सहयोग है । हमारी भावना है कि भगवान् बाहुबली गोमटेश्वर की आत्मनिष्ठा और भी अज्ञात एवं अप्रकाशित अन्य कृतियों की खोज एवं सम्पादन में इनका प्रेरणास्रोत बनें । Jain Education International For Personal & Private Use Only आशीर्वाद एलाचार्य विद्यानन्द www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 164