Book Title: Bai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 4
________________ नयी एवं प्रचर्चित कृतियों को उपलब्धि होती रहती है प्रस्तुत पुष्प में जिन पार ऋषियों का परिचय दिया गया है उनमें तीन कवियों की उपलब्धि प्रभी गत वर्ष १९८३ में की गयी खोज का सुखद परिणाम है। भब तक प्रकाशित सात भागों में ८० से भी अधिक कवियों पर विस्तृत प्रकाश डाला जा चुका है। उनमें महर 4 पूर्ण कवि, १ भट्टारक त्रिभुवनकोति, २ बूचराज, ३ छीहल, ४ ठक्कुरसी, ५ गारवदास, ६ चतुरूमल, ७ बजिनदास, ८ भट्टारक रस्नकीर्ति, ६ कुमुदचन्द्र, १० प्रभय चन्द्र, ११ शुभमन्द्र, १२ श्रीपाल, १३ संयमसागर, १४ बर्मसागर, १५, गणेश, १६ प्राचार्य नोमकोति, १७ ब्रह्म यशोधर, १८ सांगु. १६ गुणकीति, २० यश:कीति, २१ बुलासीचन्द, २२ बुलाकीदाम, २३ हेमराज गोदीका, २४ हेमराज पांडे, २५ गाई अजीतमति २६ धनपाल, २७ परिमल्ल, २८ भ० महेन्द्रकीति,२६ देवेन्द्र, एवं ३० ब्रह्म रायमल्ल के नाम उल्लेखनीय है । प्रस्तुत भाग को मिलाकर अब तक २८५० पृष्ठों का विशाल मेटर उपलब्ध कराया जा चुका है जो अपने पाप में एक रिकार्ड हैं ! मुझे पूर्ण विश्वास है कि हिन्दी के जन कवियों का जैसे-जैसे परिचय, मुल्यांकन एवं उनकी कृतियों का संकलन हिन्दी के विद्यानों के पास पह'चेगा, जैन कवियों के प्रति उनकी उपेक्षा की भावना उतनी ही तेजी से दूर हो सकेगी पोर जैन कवियों को भी हिन्दी की मुख्य धारा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो सकेगा। सहयोग अकादमी को समाज का जितमा सहयोग प्रपेक्षित है उतना सहयोग मभी तक प्राप्त नहीं हो सका है । हम चाहते है कि अकादमी के प्रत्येक ग्राम एवं नगर में सदस्य हो जिससे इसके द्वारा प्रकाशित सभी महत्वपूर्ण पुस्तक साहित्य प्रमियों के हाथों में पहुंच सके । फिर भी जितना सहयोग हमें अब तक मिला है उसके लिये हम उन सभी महानुभावों के प्राभारी हैं जिन्होंने अकादमी का सदस्य बन कर साहित्य प्रकाशन की योजना को मूर्त रूप देने में सहयोग दिया है। हमारी हार्दिक भावना तो यही है कि अकादमी द्वारा प्रति वर्ष तीन प्रकाशन हों, एक सेमिनार का प्रायोजन एवं प्राचीन साहित्य की खोज के विभिन्न कार्यक्रम तीव्र गति से होते रहे । अकादमी के संरक्षक माननीय श्री निर्मलकमार जी सा० सेठी लखनक की भी यही भावना है कि भकादमी की साहित्य प्रकाशन की योजनामों पर मच्छी राशि खर्च हो । हम सटी जी की भावनामों के प्रति आभारी हैं। मापका अकादमी के प्रति सहज सहयोग प्रशंसनीय है। उसी तरह प्रकादमी के परम संरक्षक स्वामी श्री पंडिताचार्य भट्टाएक चारूकीति जी महाराज मू सबिद्री एवं ० दरबारी लाल

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