Book Title: Atmasiddhishastra Part 01
Author(s): Shrimad Rajchandra, Bhanuvijay
Publisher: Satshrut Abhyas Vartul

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Page 13
________________ आत्मसिद्धिशास्त्र का द्वारोत्घाटन -प्रो. डॉ. सागरमलजी जैन * | आत्मसिद्धिशास्त्र एक शास्त्र है। ग्रन्थ और शास्त्रमें मौलिक अन्तर यह है कि ग्रन्थ लिखे जाते है, जबकि शास्त्र प्रकट होते है। शास्त्र अनुभव प्रधान होते है, जबकि ग्रन्थ बुद्धिप्रधान या तर्कप्रधान। आत्मसिद्धिशास्त्र श्रीमद्ाजचन्द्रजी की आत्मिक अनुभूतियों का प्रकटन है। वह स्वभाविक है, उसकी अभिव्यक्ति हुई है, लेखन नहीं क्योंकि वह एक सहज आत्मिक पीडा की ही अभिव्यक्ति है। इसीलिए उसका प्रकटन ही निम्न भावों से होता है __ वर्तमान आ कालमां मोक्षमार्ग बहुलोप। विचारवा आत्मार्थीने, भाख्यो अत्र अगोप्य ।। पुन: उसी सहजता से आत्मार्थी के लक्षण करते हुए कहा गया है आत्मज्ञान समदर्शिता, विचरे उदय प्रयोग। अपूर्ववाणी परमश्रुत, सद्गुरु लक्षण योग्य ।। प्रकृत पुस्तक की विशेषता यह है कि श्रीमद् राजचन्द्रजी की मुमुक्षु आत्माओं को सद्बोध देने के लिए जहाँ इस कृति का अवतरण हुआ, वही इसके हार्द को जनसामान्य को समझाने के लिए परम पूज्य श्री भानुविजयजी म.सा. द्वारा इसकी व्याख्यारूप इन व्याख्यानों का संकलन हुआ। अत: इस कृति को दो-दो सद्पुरुषों की आत्मानुभूति का संस्पर्श हुआ है, अत: यह मात्र एक पुस्तक नहीं है अपितु अध्यात्म से परिपूर्ण एक शास्त्र है। दूसरे एक शास्त्र होने के कारण मात्र जानने और मानने की वस्तु नहीं, अपितु जीने की कला की अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कृति की विशेषता यह है कि इसका अवतरण एक आध्यात्मिक परिवेश में हुआ है । यह आध्यात्मिक परिवेश कैसा होता है, इसे स्पष्ट करते हुए गुरुजी लिखते है कि "ज्यां शब्दों के तर्क असर नथी करता, वाद-विवाद के ग्रन्थों असर नहीं करता, मात्र दृष्टि नो मिलन थाय अने परिवर्तन थाय...अने ते वखते जे घटना थाय छे ते सम्पूर्ण ट्रान्सफरमेशन चेतना नो थाय छे." ऐसी कृतियाँ किसी सिद्धान्त या मान्यता का पोषण नहीं होती, परन्तु एक समग्र सत्य की * બનારસ હિંદુ યુનિવર્સિટીના જૈન ચેરના અધ્યક્ષ અને શાજાપુર (મ.પ્ર.)ની જૈન વિદ્યાના મૂળ ગ્રંથોના અધ્યયન, સંશોધન અને પી.એચ.ડી. માટે પ્રશિક્ષિત કરતી નામાંકિત પ્રાચ્ય વિદ્યાપીઠના સંસ્થાપક નિર્દેશક આ. ડૉ. સાગરમલજી જૈન સાહેબના માર્ગદર્શન હેઠળ १०० साधु-साध्वीमी पी.मेय.31. थयां छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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