Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 5
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नमः श्रीपरमागमजिनश्रुतेभ्यः । * प्रकाशकीय निवेदन है अध्यात्मश्रुतधर ऋषीश्वर श्रीमद्भग्वत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा प्रणीत अध्यात्म रचनाओं में श्री समयसार, श्री प्रवचनसार, श्री पंचास्तिकायसंग्रह, श्री नियमसार और श्री अष्टप्राभृत- यह पाँच परमागम प्रधान हैं। दर्शनप्राभृत, सूत्रप्राभृत, बोधप्राभृत, भाव -प्राभृत, मोक्षप्राभृत, लिंगप्राभृत, और शीलप्राभृत- यह आठ प्राभृतोंका समुच्चय नाम अष्टप्राभृत है। श्री समयसारादि पाँचों परमागम हमारे ट्रस्ट द्वारा (आद्य चार परमागम गुजराती एवं हिन्दी भाषामें तथा पाँचवाँ अष्टप्राभृत हिन्दी भाषामें) अनेक बार प्रकाशित हो चुके हैं। श्री समयसारादि चारों परमागमोंके सफल गुजराती गद्यपद्यानुवादक, गहरे आदर्श आत्मार्थी, पंडितरत्न श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह कृत अष्टप्राभृतके- उक्त चारों परमागमोंके हरिगीत-पद्यानुवादोंके समान-मूलानुगामी, भाववाही एवं सुमधुर गुजराती पद्यानुवाद सह यह छठवां संकरण अध्यात्मिकविद्याप्रेमी जिज्ञासुओंके करकमलमें प्रस्तुत करते हुए हमें अतीव अनुभूत होता है। श्री कुन्दकुन्द-अध्यात्म-भारतीके परम भक्त, अध्यात्मयुगस्रष्टा, परमोपकारी पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीने इस अष्टप्राभृत परमागम पर अनेक बार प्रवचनों द्वारा उसके गहन रहस्यों का उद्घाटन किया है। वास्तवमें इस शताव्दीमें अध्यात्मरुचि के नवयुगका प्रर्वतनकर मुमुक्षु समाज पर उन्होंने असाधारण असीम उपकार किया है। इस भौतिक विषयविलासप्रचुर युगमें, भारतवर्ष एवं विदेषोंमें भी ज्ञान-वैराग्यभीने अध्यात्मतत्त्वके प्रचारका प्रबल आन्दोलन प्रवर्तमान है वह पूज्य गुरुदेवश्रीके चमत्कारी प्रभावनायोगका ही सुफल है। अध्यात्मतीर्थ श्री सुवर्णपुरी (सोनगढ़) के श्री महावीर-कुन्दकुन्द दिगम्बरजैन परमागममन्दिरमें संगमरमर के धवल शिलापटों पर उत्कीर्ण अष्टप्राभृतकी मूल गाथाओं के आधार पर इस संस्करणको तैयार किया गया है। इसमें मदन गंज निवासी पं श्री महेन्द्रकुमारजी काव्यतीर्थ द्वारा, सहारनपुरके सेठ श्री जम्बुकुमारजी के शास्त्र डारसे प्राप्त पण्डित श्री जयचन्द्रजी छाबड़ाकृत भाषावचनिकाकी हस्तलिखित प्रतिके आधार से, जो भाषपरिर्वतन किया गया था वह दिया गया है। एवं पदटिप्पणमें आदरणीय विद्वद्रल श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह द्वारा रचित गुजराती पद्यानुवाद-जो कि सोनगढ़के श्री कहानगुरुधर्मप्रभावनादर्शन (कुन्दकुन्द-प्रवचनमण्डप) में धवल संगमरमर-शिलापटों पर उत्कीर्ण उक्त पाँचों परमागमोंमें अनतर्भूत है-नागरी लिपिमें दिया गया है। इस संस्करणका 'प्रूफ' संशोधन श्री मगनलालजी जैन ने तथा कॉम्प्यूटर टाइप-सेटिंग 'अरिहंत कॉम्प्यूटर ग्राफिक्स', तथा मुद्रणकार्य ‘स्मृति ऑफसेट', सोनगढ़ने कर दिया है, तदर्थ उन दोनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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