Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 088 to 176
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 25
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth. अर्थ जहाँ पर भरतचक्रवर्ती ने अपनी प्रतिमा युक्त अपने ९९ बन्धुओं की प्रतिमा तथा (श्री ऋषभ से लेकर श्री महावीर तक) चौबीसों तीर्थंकर भगवन्तों की प्रतिमाओं का निर्माण करवाया, वह श्री अष्टापद गिरिराज जयवन्ता वर्त्तता है। (९) - यत्र भ्रातृप्रतिमा व्यधाच्चतुर्विंशति जिनप्रतिमाः । भरतः सात्मप्रतिमाः, स जयत्यष्टापदगिरीशः ||९|| જ્યાં ભરત ચક્રીએ પોતાની પ્રતિમા સહિત પોતાના ૯૯ ભાઇઓની પ્રતિમાઓ અને ચોવીસ તીર્થંકરની પ્રતિમાઓ નિર્માણ કરાવી, તે અષ્ટાપદ ગિરિરાજ જયવંત વર્તે છે. ૯ अर्थ - अपनी-अपनी आकृति प्रमाण, वर्ण और लाञ्छन युक्त वर्तमानकालीन २४ जिनेश्वरों के बिम्ब, जहाँ पर सिंहनिषद्या नामक चैत्य मन्दिर में श्री भरतचक्रवर्ती महाराजा ने स्थापित किये हैं, वह श्री अष्टापदगिरिराज जयवन्ता वर्त्तता है। (१०) પોતપોતાની આકૃતિ (શરીર) પ્રમાણ, વર્ણ અને લાંછન સંયુક્ત વર્તમાન ૨૪ જિનેશ્વરોનાં બિબો જયાં (સિંહનિષદ્યા નામના ચૈત્યમાં) ભરત ચક્રીએ પધરાવ્યાં, તે અષ્ટાપદ ગિરિરાજ જયવંત વર્તે છે. ૧૦. सप्रतिमान्नवनवतिं बन्धुस्तूपांस्तनाईत स्तूपम् । यत्रारचयचक्री स जयत्यष्टापदगिरीशः ।। ११ ।। स्वस्वाकृतिमितिवर्णाङ्क वर्णितान् वर्त्तमानजिनबिम्बान् । भरतो वर्णितवानिह स जयत्यष्टापदगिरीशः ।। १० ।। अर्थ - जहाँ पर मूर्ति - प्रतिमा युक्त 99 बन्धुओं के ९९ स्तूप तथा प्रभु का एक स्तूप श्री भरतचक्रवर्ती ने निर्माण किया है अर्थात् बनाया है, वह श्री अष्टापद गिरिराज जयवन्ता वर्त्तता है। (११) . જ્યાં પ્રતિમા સહિત ૯૯ બંધુઓના ૯૯ સ્તૂપો તથા એક પ્રભુનો સ્તૂપ ભરત ચક્રીએ નિર્માણ કર્યો, તે અષ્ટાપદ ગિરિરાજ જયવંત વર્તે છે. ૧૧ - अर्थ - मोहरूपी सिंह को मारने के लिये समर्थ अष्टापद जैसे जिनके योजन प्रमाण आठ सोपानपगथिया श्री भरत चक्रवर्ती ने करवाये हैं, बनवाये हैं। इसलिये वह अष्ट-आठ योजन ऊँचा सुशोभित होता है । ऐसा श्री अष्टापद गिरिराज जयवन्ता वर्त्तता है । (१२) Shri Ashtapadkalp भरतेन मोहसिंहं हन्तुमिवाष्टपदः कृताष्टापदः । शुशुभेऽष्टय जनो यः स जयत्यष्टापदगिरीशः ।। १२ ।। મોહરૂપ સિંહને હણવાને સમર્થ અષ્ટાપદ (આઠ પગવાળા જાનવર) જેવા જેના (યોજન-યોજન પ્રમાણ) આઠ પગથિયાં ભરતે કરાવ્યાં, તેથી જે આઠ યોજન ઊંચો શોભે છે, તે અષ્ટાપદ ગિરિરાજ જયવંત વર્તે છે. ૧૨ अर्थ श्री भरत चक्रवर्ती इत्यादि अनेक कोटि मुनिवरों ने जहाँ पर सिद्धिपद प्राप्त किया है; ऐसा श्री अष्टापद गिरिराज जयवन्ता वर्त्तता है । (१३) यस्मिन्ननेककोटयो, महर्षयो भरतचक्रवत्योंद्याः । सिद्धिं साधितवन्तः, स जयत्यष्टापदगिरीशः ।। १३ ।। -85 72 -

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