Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 088 to 176
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 37
________________ Panchshati Prabandh 89 पञ्चशतीप्रबोध (प्रबन्ध) सम्बन्धः प्रबन्धपञ्चशती ( रचना, वि. सं. १५२१ ) मी - माटा *जिनान्युगादिदवा दिमवर्द्धमानांतिमा चौक व लिनः परां श्री ं डरी का दिन यती नमाम्यदोबा समाधिदाता १ किंचिद्वारारा | नातानिशम्य किंचित्रान्यादिवशी बोधनामा क्रियामात्र २ लक्ष्मी मागपादपद्मप्रमाद तीन विधीयतका श्रीष्टापदतीर्धन मन फलं श्री वर्धमान तिचा पदतीर्थतः तदा स्वास्तामादाय किं करिष्यति वातरो तम स्वामी सूर्य किरण नावलं व्यतीयाप रियायत भरतकारित प्रामादिविंशतिजिनिप्रान मानप्रमाणाद हा कारवर्णादि का दाता शाहिदमादाय वंदि शिवराव बीमं परम निद्दिािमिममदिम बाद बामः कृत्यती तारयदातदा] [२०] तामागोतमस्वामिय वाजिगुः ततः श्रीगोतामा मार्ग्रवल कस्माठाम रहमानीय स्वायुष्टतमध्ये वासवता मानानाजयामाम ने जिमखागोतमस्वा मिलविध्याय ५ तापमानांकनातताता व नि। श्री वर्धमान जिनवा नित्रा ५०० तापमान कवलज्ञानं प्रोग तापमानात्पन्नगोतम स्वामी कवलज्ञानात्पत्तिमजा प्रातः प्रददाति ततस्त्रप्रदक्षिणादचा यदा [कवलियमपविष्टस्तदागोतमारवयव प्रन्नवेदात जल्पितापि तदावर्धमानःचकवल्यागात नामाकरु गोतमःप्राकाशाननःप्रतीक वलज्ञानात्म त्रिबंधयान नवा शमयिचाच प्राना पुराना यम दीक्षा दाम्पतियां कवलज्ञानमभन ॥ ततः स्वगतामा तवापिकवलज्ञानं न विद्यतइतिश्रीगोतमस्वाम्प टापदतीर्षचेदन संबंध एकदा तिन 'नयापनरत्राणे मागाष्टी वगाउपविष्टः सत्रमाणका आता पाक मुलााकन निहाटा पिकाक चालिता मात्र निभाता मुत्राश्रीतिरिमेव आमद दार्य हरिप्रावर्य ततः हरिणा तानिता ततः A - संज्ञकप्रति, छाणी ( वडोदरा ) ना श्रीजैन थे. ज्ञानमंदिरना उपा. श्रीवीरविजयजीशास्त्रसंग्रहनी प्रतिना प्रथम पृष्टनी प्रतिकृति Shri Ashtapad Maha Tirth

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