________________
"शब्द में, विचार में, तरंग में भावों को संग्रहीत कर समाविष्ट होने दीजिए। उस महाधारा में हमारी शक्ति सम्मिलित हो जाएगी। आकाश में जो तरंगें संग्रहीत हुई हैं, अरिहंत के आस-पास जो-जो आभामण्डल निर्मित हुआ है, उन संग्रहीत, निर्मित तरंगों में हमारी तरंगें भी चोट करती हैं। अपने चारों तरफ एक दिव्यता का, भगवत्ता का लोक निर्मित हो जाएगा।" (पृ. सं. ६५) ___ श्रमण सृजना-साधना का अनुपम संगम है, यहाँ भावात्मक साधना के साथ साधना के रचनाशील पक्ष की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है। पिछले दो दशक से इस गौरवशाली संघ में निवृत्ति के साथ प्रवृत्ति परक अध्ययन गवेषणा की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है। साध्वी डॉ. दिव्य प्रभा जी इसी परम्परा की गौरव-गरिमा हैं; उनके शोध प्रबन्ध से भारतीय वाङ्मय को तो एक नया दिशा-दर्शन मिला ही है, साथ ही श्रमण परम्परा भी गौरवान्वित हुई है। मैं उनके इस रचनाशील प्रयोग को अभिनन्दनीय मानता हूँ। मेरा आत्म विश्वास है कि वे इसी तरह रचना-मूलक प्रयोग . धर्मिता के द्वारा न केवल जिन-शासन की प्रभावना करेगी अपितु भारतीय चिन्तन के. नवोन्मेष में अपना अनुपम योगदान देती रहेगी, इसी सदाकांक्षा के साथ उनके तन,. मन और जीवन के समुत्कर्ष का हार्दिक शुभाशीर्वाद ।
-आचार्य देवेन्द्र मुनि
[१८]