Book Title: Aparokshanubhuti Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni Publisher: Khemraj Krushnadas View full book textPage 2
________________ भूमिका. प्रगट होकि कलिकालमें पुरुष अनेक दुःसोंसे दुःखित रहते हैं और सबही चाहते हैं कि हमारा दुःख दूर हो जाय इस विषयमें विचार यहहै कि संसारके दुःख यद्यपि क्षण घडी महीना वर्ष इत्यादि नियमित कालकी औपध मंत्रादिकोसभी दूर होस केहैं परन्तु अत्यन्त नाशको प्राप्त नहीं होसक्ते कि जिससे दुःखसागरसे पीछा छूटे क्योंकि मुक्तितौ ब्रह्मज्ञानके विना कदापि नहीं होसकी जैसा कि यजुर्वेदकी श्रुविका अभिप्रायहै, "तमेव विदित्वातिमृत्युमेविनान्यः पन्थाविद्यतेऽयनाय" उसनमकाही साक्षात्कार कर मुक्तिको प्राप्तहोताहै अन्य कोई उपाय मुक्तिके प्राप्त होनेका नहीं है, इसप्रकार संसारको क्लेशित देखके "परिव्राजकाचार्य श्रीमच्छंकराचार्यजी" अपरोक्षानुभूतिको रचतेभए जिसमें संक्षेपसे वेदान्त प्रक्रिया सरलरीतिसे वर्णन करीहै और इसकी संस्कृतटीकाभीहुई परन्तु ऐसे पुरुप बहुत कम होतेहैं जोकि मूल अथवा संस्कृतटीकाको समझ सकें और जो समझसकैहैं इनकोतौ संस्कृतटीकाका भी कोई कामनहोहै केवल संस्कृतका किञ्चिन्मान ज्ञान रखनेवाले सत्पुरुपोंके अर्थ इस पुस्तककी स्वरूपप्रकाशिका नामवाली भापाटीका अति स्पष्ट बनाईहै इस मेरे श्रमको देख सज्जनपुरुषोंको अवश्य आह्वाद होगा। श्रीयुत भोलानाथात्मज पण्डित रामस्वरूप द्विवेदी.Page Navigation
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