Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 6
________________ प्रकार प्रत्येक आत्मा को अपने ध्येय की प्राप्ति में प्रयत्न करना चाहिए । ध्येय की प्राप्ति में चाहे कैसे भी कष्टों का सामना करना पड़ जाए, किंतु अपने प्रण से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। इस सूत्र के अध्ययन से भली भॉति उक्त तीन शिक्षाएँ मिल जाती हैं। अतः मुमुक्षु वर्ग को इस शास्त्र का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए । यद्यपि अन्य अंग शास्त्रों की अपेक्षा वर्तमान काल में प्रस्तुत शास्त्र की श्लोक-संख्या स्वल्प है, किंतु इस शास्त्र का प्रत्येक पद शिक्षा से ओत-प्रोत है। अतः जब पाठक वर्ग उपयोगपूर्वक इसका स्वाध्याय करेंगे, तब वे स्वयं ही अनुलोम होने लगेंगे। इस समय बहुत-सी मूर्ख आत्माएँ स्वाध्याय से शून्य एवं सदाचारियों की संगति न होने के कारण आचार से भ्रष्ट हो रही हैं । जब वे इस प्रकार आगमों का स्वाध्याय करेंगी तथा सर्वज्ञ-प्रणीत शास्त्रों में आए हुए चरित्रानुवाद से संबंध रखने वाले पवित्र महर्षियों की जीवनियों पर दृष्टिपात करेंगी, तो आशा है कि वे आत्माएँ भी 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' के सिद्धांत पर आरूढ़ होकर निर्वाण-पद की अधिकारी बन सकेंगी, जिससे कि सादि अनंत पद एवं अनंत और अक्षय सुख की प्राप्ति हो सकेगी। आत्माराम

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