Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 5
________________ ( ३ ) होकर यह नवा अंगशास्त्र हिंदी अनुवाद सहित आपके संमुख उपस्थित किया जा रहा है । द्वादशांग शास्त्रों में अनुत्तरोपपातिक शास्त्र नवॉ अंग है । इस शास्त्र में उन्हीं पवित्र आत्माओं की संक्षिप्त जीवनी का दिग्दर्शन कराया गया है, जिन्होंने सांसारिक सुखों को छोड़कर ज्ञानपूर्वक चारित्र ( तप ) की आराधना की है । किंतु आयु स्वल्प होने के कारण वे निर्वाण - पद तो न प्राप्त कर सके, किंतु अनुत्तर विमानों में जा उत्पन्न हुए । और विशिष्ट अवधि ज्ञान द्वारा उनका समय आत्मान्वेषण में ही व्यतीत हो रहा है । इसी कारण वे एक जन्म और ग्रहण करके निर्वाण-पद की प्राप्ति अवश्य करेंगे । I पाठक गण ! प्रस्तुत शास्त्र के तृतीय वर्ग में वर्णन किए हुए धन्य अनगार के चरित्र को ध्यानपूर्वक पढ़िएगा, जिससे कि आपको यह भली भाँति विदित हो जाएगा कि धन्यकुमार ने, किस प्रकार, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के वचनामृत का पान कर, सांसारिक सुखों को छोड़कर, केवल निर्वाण-पद को ही अपना ध्येय बना, तप-द्वारा अपने शरीर को अलंकृत किया था । पाठक गण, इस चरित्र के अध्ययन से तीन शिक्षाऍ प्राप्त कर सकते हैं: -- १ - गुणी आत्माओं का गुणानुवाद करना, जैसे-- धन्य अनगार के गुण श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जनता में प्रकट किए । इस शिक्षा से प्रत्येक आत्मा को गुणी जनों का गुणानुवाद करने की शिक्षा मिलती है । २ - महाराजा श्रेणिक ने जब धन्य अनगार के गुण श्री भगवान् के मुखारविंद से सुने, तब वह स्वयं उनके दर्शन कर उनकी स्तुति करने लगा । इस कथन से यह शिक्षा मिलती है कि यथार्थ गुणानुवाद ही होना चाहिए, न कि काल्पनिक | क्योंकि जो यथार्थ गुणानुवाद होता है, वह प्रत्येक आत्मा को गुणों की ओर आकृष्ट करता है । परंतु जो काल्पनिक गुणानुवाद होता है, वह उपहास्य हो जाता है । ३ – जिस प्रकार धन्य अनगार ने अपनी प्रतिज्ञा का उत्साहपूर्वक पालन किया, जिससे कि वे अपने ध्येय की प्राप्ति में सफल हो सके, इसी

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