Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 4
________________ के उपदेशों एवं अनुभवों से इसी परिणाम पर पहुंचते हैं कि आत्मिक शांति के विना बाह्य पदार्थों से कभी भी शांति-लाभ नहीं कर सकते । इस समय प्रत्येक आत्मा आत्मिक शांति के विना पौगलिक पदार्थों मे शांति प्राप्त करने की धुन में लगी हुई है। इसी बड़ी भारी भूल के कारण वह दुःख मे फंसी हुई है। ___ जब हम 'सिंहावलोकन न्याय' से अपने पूर्वजों के इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं, तो हमे पता चलता है कि आज कल के सुख-साधनों के प्रायः न होने पर भी उनका जीवन सुखमय था । क्योंकि उनके हृदयों पर सदाचार की छाप बैठी हुई थी । वे अपने जीवन को सदाचार से विभूषित करते थे, न कि नाना प्रकार के शृंगारों से । वास्तव में वे आत्मिक शांति के ही इच्छुक थे । यही कारण था कि उनका जीवन सुखमय था । वे आज कल की भॉति आत्मिक शांति से रहित बाह्य शांति के अन्वेपक नहीं थे। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि आत्मिक शांति किस प्रकार उपलब्ध हो सकती है ? इसका उत्तर यही है कि सर्वज्ञोक्त शास्त्रों का स्वाध्याय एवं पवित्र आत्माओं का मंसर्ग आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए परम आवश्यक हैं। स्वाध्याय से आत्म-विकास होने लगता है और जीव, अजीव का भली भाँति निर्णय होजाता है, जिससे कि आत्मा सम्यग्-दर्शन एवं पवित्र चरित्र की आराधना में प्रयत्नशील होने लगती है । इमी आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए राजा, महाराजा, बड़े बड़े धनी, मानी पुरुप भी अपने पौगलिक सुखों का परित्याग कर आत्मिक शांति की खोज में लग गए | क्योंकि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने, आत्मिक शांति की उपलब्धि के लिए, मुख्यतया दो ही माधन प्रनिपाटन किए है-विद्या और चरित्र । पुरुष विद्या-ज्ञान-के द्वारा प्रत्येक पदार्थ के स्वरूप को भली प्रकार जान सकता है और चरित्र के द्वारा अपने आत्मा को अलंकृत कर सकता है, जिसमे कि वह निर्वाण के अक्षय सुखों का आम्बाढन कर सकता है । जनता को उक्त दोनों अमूल्य रत्नों की प्राप्ति हो, इसी आशय से प्रेरित

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