Book Title: Anusandhan 2016 09 SrNo 70
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 5
________________ आपणे आपणा समयनी वात करीए. आपणा साम्प्रत समयमां, जैन साहित्यना क्षेत्रे, आधुनिक पद्धतिना संशोधननो पायो नाखनारा विद्वज्जनो, आपणा देशमां तेमज विदेशोमां, घणा घणा थया छे. ए सहुनां नामो लेवानुं तो शक्य नथी, परन्तु, आपणा जाणीतां थोडांक नामो लईए. आगमप्रभाकर मुनिराजश्री पुण्यविजयजी, तेमना बे गुरुवर्यो; पुरातत्त्वाचार्य श्रीजिनविजयजी, श्रीकान्तिसागरजी जेवा जैन मुनिवरो; तेमज पं. सुखलाल संघवी, पं. बेचरदास दोशी, पं. हरगोविन्ददास, पं. दलसुख मालवणिया, नगीनदास शाह, हरिवल्लभ भायाणी, जयन्त कोठारी जेवा गृहस्थ विद्वज्जनो; दिगम्बर सम्प्रदायना अनेक विद्वज्जनो - आवां घणां घणां नामो अहीं लई शकाय. संशोधन-क्षेत्रे आ बधानुं योगदान अनन्य छे, आगq छे, दाखलारूप छे. आ बधानां शोधकार्योथी आपणुं विद्याक्षेत्र तथा साहित्य घणुं रळियात बन्युं छे. साथे ज, आ बधानी अनुपस्थितिथी ते क्षेत्रे आपणे घणा रांक पण बन्या छीए. उपरोक्त नामावलीमां अनिवार्यपणे उमेरवु पडे एवं एक नाम छे डॉ. मधुसूदन ढांकी. आन्तरराष्ट्रीय कक्षाना भारतीय विद्वज्जन. गुजरातना अने गुजराती भाषाना मूर्धन्य विद्वान. अनेक भाषाओ, विद्यानी अनेक शाखाओमां एमनी अस्खलित अने साधिकार गति; छतां पुरातत्त्व, इतिहास अने स्थापत्यनां क्षेत्रोना ए सर्वमान्य विद्वान. संशोधनना चांवीरूप सिद्धान्तोमां सौथी पहेली आवे ‘सत्यनिष्ठा. शोध-क्षेत्रनी सत्यनिष्ठा एटले प्रमाणो, साक्ष्यो, आधार-पुरावाओ अने परम्पराने नजर समक्ष राखीने ज निर्णायक बननारी सत्यनिष्ठा. आवी निष्ठा सदाय जाळवनार सज्जन एटले डॉ. ढांकीसाहेब. रूढिजड परम्परावादीओ तेमनां संशोधनोने न स्वीकारे. विरोध पण करे. परन्तु ढांकी कहेतां के प्रमाणो जे अने जेवां प्राप्त छे तेने आधारे ज मूल्याङ्कन, अर्थघटन के विधान थई शके; कोईने गमे छे । नथी गमतुं एवा मापदण्डथी काम करीए तो ते संशोधन नहि होय, अने तेमां सत्यनिष्ठा नहि होय. मूळे पोरबन्दरना. छेल्लां वर्षों अमदावादमां वसेला. कार्यक्षेत्र बनारस तथा दिल्ही. जैन वणिक् कुळना माणस. परन्तु गुजराते तेमने बराबर ओळख्या नहि. जैनोए तेमने उवेख्या - थोडाक अपवादोने बाद करतां.

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