Book Title: Anusandhan 2010 12 SrNo 53
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 147
________________ डिसेम्बर २०१० १४१ उपदेश मोक्ष मार्ग को देने वाला है । (संस्कृत व्याश्रय काव्य, सर्ग-५, श्लोक १३३-१४१) इसी प्रकार राजा कुमारपाल की कुलदेवी कण्टेश्वरी देवीके समक्ष जो पशुबली-सप्तमी को ७०० पशु और ७ भैंसे, अष्टमी को ८०० पशु और ८ भैंसे तथा नवमी को ९०० पशु और ९ भैंसे दी जाती थी उसको भी अपनी शक्ति का प्रयोग कर समाप्त करवाया । शैवमठाधीश गण्ड बृहस्पति भी जैनाचार्यों को वन्दन करते थे। ऐसा होने पर भी वे अन्ध श्रद्धा (गतानुगतिक) के पक्षपाती नहीं थे। हेमचन्द्र ने महावीरस्तुति में स्पष्ट कहा है हे वीर प्रभु, केवल श्रद्धा से ही आपके प्रति पक्षपात नहीं है और न ही किसी द्वेष के कारण दूसरे से अरुचि है । आगमों के ज्ञान और यथार्थ परीक्षा के बाद तेरी शरण ली है । 'न श्रद्धयैव त्वयि पक्षपातो न द्वेषमात्रादरुचि परेषाम् । यथावदाप्तत्वपरीक्षया च त्वामेव वीर प्रभुमाश्रिताः स्मः ॥ महावीर स्तुति, श्लोक-५ ।' ८४ वर्ष की अवस्था में अनशनपूर्वक अन्त्याराधन क्रिया उन्होंने आरम्भ की तथा कुमारपाल से कहा कि 'तुम्हारी आयु भी छ: माह शेष रही है ।' अन्त में कुमारपाल को धर्मोपदेश देते हुए संवत् १२२९ में अपना देह त्याग दिया । शिष्य समुदाय आचार्य हेमचन्द्र का गुजरात के दो-दो राजाओं-सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल, उदयन मन्त्री आम्रभट्ट, वाग्भट्ट, चाहड़, खोलक, महामात्य शान्तनु आदि राजवर्गीय परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। आचार्य का शिष्य समुदाय भी विशाल रहा है । कहा जाता है कि उनके १०० शिष्य थे । शतप्रबन्धकार रामचन्द्रसूरि, अनेकार्थ कोष के टीकाकार महेन्द्रसूरि, वर्द्धमानगणि, देवचन्द्रगणि, गुणचन्द्रगणि, यशःचन्द्रगणि, वैय्याकरणी उदयचन्द्रगणि, बालचन्द्रसूरि आदि मुख्य थे । आचार्य हेमचन्द्र रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का मङ्गलाचरण 'सकलार्हत्प्रतिष्ठान' को परवर्ती तपागच्छ परम्परा पाक्षिक प्रतिक्रमण इत्यादि

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