Book Title: Anusandhan 2010 12 SrNo 53
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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डिसेम्बर २०१०
अत्यारनी परिस्थिति अने विद्वानोनी कारमी अछतना समये आजना संसारत्यागी युवान साधु-साध्वीजीओ द्वारा सम्पूर्ण प्रमाणभूत अने वैज्ञानिक ढंगथी थई रहेला संशोधन/अध्ययन / सम्पादन अने प्रकाशनो जोतां आशास्पद अने उज्ज्वल भविष्यनी अंधाणी जेम महाराजसाहेबने देखाणी छे, अनी प्रतीति समग्र विद्याजगतने थवामां हवे झाझी वार नथी. "
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आटली भूमिका पछी श्री कनुभाई जानीनो परिचय आपतां श्री जयदेव शुक्ले जणाव्युं के - " अक तणखो दीपमाळनो परिचय आपवा जाय तो केवी ते आपी शके ? आ जरापण नम्रता नथी. त्रणे महानुभावो आवा दीपमाळ समा छे. साहित्यना, संगीतना अने कलाओना तमाम क्षेत्रोना मर्मज्ञो छे. श्री कनुभाई जानी ओटले सहज, सरळ, निर्दम्भ, निस्पृह छतां जीवता जागता ज्ञानकोश..." आम कहीने तेमणे कनुभाई जानीना व्यक्तित्वना अनेक पासांओने उजागर कर्या हता. अ पछी श्री लाभशंकर पुरोहितनो परिचय आपतां श्री शिरीष पंचाले पोतानी त्रीश - पांत्रीश वर्षनी मैत्रीनो उल्लेख करीने जणाव्युं के "आधुनिकता - अनुआधुनिकताना पूर्व-पश्चिमना तमाम साहित्यनो, आपणी संस्कृतना शिष्ट-प्रशिष्ट साहित्यनो सम्पूर्ण परिचय होवा छतां लोकधर्मी साहित्यकार तरीके गुजरातना परम्परित साहित्य, संस्कार, कलाओ, विद्याओना पूरा जाणकार श्री लाभुदादा नम्रतानी साथे पोते जे माने छे तेनी प्रतीति सौने कराववा पूरा कटिबद्ध होय छे. समाजमां आवी असली वातो करनारा ओछा ज होय... ' त्यारबाद प्रा. परम पाठके ७२ वर्षना युवान संशोधक श्री हसु याज्ञिकनो परिचय आपतां तेओना मध्यकालीन कथासाहित्य, गूढ विद्याओ, लोकसाहित्य, संगीतना मरमी अभ्यासी संशोधक अने सामाजिक रहस्यात्मक कथासाहित्यना सर्जक तरीकेना विभिन्न पासांओ वर्णव्या हता.
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आ प्रसंगे आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजीओ वक्तव्य आपतां श्रीहेमचन्द्राचार्यजी द्वारा गुजरातने मळेल पांच अनुशासनोनी सदृष्टान्त चर्चा करी हती. " ओकली विद्या सन्मानने पात्र बनावती नथी परन्तु अमां ज्ञान, क्रिया, तप, साधना भळे तो ज मुक्ति प्राप्त थाय. कलिकालसर्वज्ञनुं बिरुद हेमचन्द्राचार्यजीने
गुर्जर सम्राटोने मार्गगामी बनाववाने कारणे प्राप्त थयुं छे, अने मात्र सम्प्रदायना लेबलथी ज ओळखाववामां आवे छे परन्तु आचार्य श्री अटला सीमित नहोता. '

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