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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
अमदावादमां श्री हठीसिंह केसरीसिंहनी वाडी मध्ये संस्कृत-सभा
अमदावाद शहेरमां शेठ श्री हठीसिंह केसरीसिंहनी वाडीमां जैन संघमां शासनसम्राट समुदायना गच्छाधिपति पू. आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराजना तत्त्वावधानमां आसो सुदी १, ता. ८-१०-२०१०, शुक्रवारना दिने अक संस्कृत सभा योजाई गई.
विद्वान आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी म.नी प्रेरणाथी कीर्तित्रयी मुनिओ द्वारा संकलित संस्कृतभाषामय अयनपत्र 'नन्दनवनकल्पतरु'ना पचीसमा अंक - 'रजत अंक'ना प्रकाशन- प्रागट्य निमित्ते आ संस्कृत - सभानुं आयोजन करवामां आव्युं हतुं.
आ सभाना अध्यक्ष तरीके संस्कृतभाषाना आदरणीय विद्वान्, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयना पूर्व कुलपति, त्रिवेणी कवि डॉ. श्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र शिमलाथी पधार्या हता. बीजा वक्ताओमां पाटणनी हेमचन्द्राचार्य युनिवर्सिटीना स्थापक कुलपति श्री कुलीनचन्द्र याज्ञिक तथा गुजरातना संस्कृत साहित्यना मान्य विद्वान प्रा. श्री विजय पंड्या पधार्या हता. ते सिवाय कीर्तित्रयी मुनिओओ पण संस्कृत भाषामां पोतानुं वक्तृत्व आप्युं हतुं.
सभाध्यक्ष श्री राजेन्द्र मिश्रजीओ पोताना मननीय प्रवचनमां बुलंद स्वरे जणाव्युं हतुं के— “भारत देशनी सर्व भाषाओ संस्कृतभाषामांथी ज उत्पन्न थई छे अने ते ते भाषाओना मोटा भागना शब्दो संस्कृत ज छे, तेथी संस्कृतभाषा अ भारतनी अन्यान्य प्रादेशिक भाषाओनी समोवडी ज छे. भले आजना झडपथी पलटाता देश- काळमां ते व्यवहारभाषा न बनी शके, पण तेथी तेनुं महत्त्व जराय ओछं थतुं नथी, उलटं वधी जाय छे. आजथी बे हजार वर्ष पहेलां जे संस्कृतभाषा बोलाती अने लखाती हती ते ज आजे पण बोलाय अने लखाय छे. काश्मीरमां जे संस्कृत बोलाय - लखाय छे ते ज केरलमां पण बोलाय-लखाय छे. युरोपीय लेटिन भाषानी जेम संस्कृत भाषा कोई क्लासिकल भाषा नथी के जे व्यवहारमां न वपराती होय. संस्कृत भाषा आजे पण व्यवहारमां छे, तेमां बोलाय - लखाय छे अने ग्रन्थो पण रचाय छे. अन्य