Book Title: Anusandhan 2010 12 SrNo 53
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 185
________________ डिसेम्बर २०१० १७९ भाषाओमां जेम साहित्यना नवा नवा प्रकारो रचाय छे तेम संस्कृतभाषामां पण रचाय ज छे. ओ कोई मृत भाषा नथी. ते तो सदाय जीवन्त अने नित्यनूतन भाषा छे. आ छेल्ला शतकमां ज जोइओ तो संस्कृत भाषामां ३००थी अधिक महाकाव्यो रचायां छे. अन्य कोइपण भाषाओ करतां आ आंकडो क्यांय वधारे छे. ज रीते महाकाव्य सिवायना साहित्यना प्रकारोमां पण आ ज स्थिति छे. अने अमो साहित्यकारो पण आजे अन्य भाषाओना उत्तमोत्तम प्रशिष्ट साहित्यनी जेम संस्कृतभाषामां पण तेवू ज उत्तम अने प्रशिष्ट साहित्य रचवाना पूर्ण प्रयत्नो करीओ छीओ, जेथी संस्कृतभाषा अन्य भाषानी साथोसाथ टकी शके, लोकोने तेना तरफ आकर्षण लागे, ते पार्छ ऊंचुं आवे. आपणा लोकोने पण अमारी भलामण छे के- ज्यारे वसति-गणतरी थाय छे त्यारे तेमां भाषाओना खानामां लोको पोतानी प्रादेशिक भाषा अने अंग्रेजी भाषा जाणे छेओम लखावे छे. तेथी दरेक प्रादेशिक भाषामां अने अंग्रेजीभाषामां लाखोकरोडो लोकोनी गणतरी थाय. ज्यारे संस्कृतभाषामां मात्र अमुक हजार लोकोनी ज गणतरी थाय छे. आपणी दरेकनी मूळ भाषा तो संस्कृत ज छे. दरेक भाषामां संस्कृत शब्दनो ज घणो मोटो उपयोग थाय छे. तो जो आपणे वसति-गणतरी वखते प्रादेशिक भाषा साथे संस्कृतभाषा पण लखावीओ तो सरकारने पण थाय के- देशमां संस्कृतभाषी लोको घणा वधारे छे, तेथी अमारे पण तेना प्रचारप्रसार माटे कंइक करवू जोइओ. तो आ भाषाने नित्य जीवन्त अने उच्चस्तरनी राखवा माटे आपणे ज प्रयत्न करवो पडशे." 'नन्दनवनकल्पतरु'ना प्रकाशन अंगे पण तेमणे कडं के - "भारतमां अत्यार सुधीमां ३००थी अधिक संस्कृत सामयिको प्रकाशित थयां छे. आजे पण १५० थी वधु सामयिको प्रकाशित थाय छे. पण मने तो बे ज संस्कृत सामयिको अत्यन्त शिष्ट अने शुद्ध लाग्यां छे के जेमां आगळना नामथी लइने छेल्ला पानाना अक्षर सुधी अेक पण व्याकरणनी भूल न होय के अशुद्धि न होय. ते बे सामयिकोमां ओक छे दिल्हीथी प्रकाशित थतुं 'दूर्वा' अने बीजूं छे 'नन्दनवनकल्पतरु'. मने ओ खूब ज गमे छे, अने तेनुं साद्यन्त वाचन हुं करुं छु. मारे मन तेनुं खास महत्त्व तो ए छे के संसारथी विरक्त साधु भगवन्तो तेनुं सम्पादन-प्रकाशन करे छे. अने हुं पूरा विश्वासथी कहीश के भारतभरमां

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