Book Title: Anusandhan 2010 12 SrNo 53
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 146
________________ १४० अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ कुमारविहारशतक में मिलता है । जहाँ कुमारपाल ने सहस्रों मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया वहीं केदार तथा सोमनाथ के मन्दिर का भी जीर्णोद्धार करवाया । ___कुमारपाल की प्रार्थना पर ही आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्य, योगशास्त्र तथा वीतराग स्तुति आदि की रचना की । संस्कृत व्याश्रय काव्य का अन्तिम सर्ग और प्राकृत व्याश्रय काव्य कुमारपाल के समय में ही लिखा गया । प्रमाण मीमांसा की रचना भी इसी के काल में हुई । अनेक ग्रन्थों की स्वोपज्ञ टीकाएं, जिसमें कि कुमारपाल का उल्लेख मिलता है, रचना की गई । कुमारपाल ने ७०० लेखकों को बुलवाकर हेमचन्द्र निर्मित ग्रन्थ की प्रतिलिपि करवाई और २१ ज्ञानभण्डार भी स्थापित किए। परमार्हत् कुमारपाल रचित साधारण जिनस्तवः 'नमाखिलाखण्डलमौलिरत्न' ३३ पद्यों का यह स्तव भी प्राप्त होता है । ऐसा लगता है कि जैन शासन में वासितचित्त होकर कुमारपाल ने अन्तिम समय में वीतराग स्तोत्र, योगशास्त्र आदि ग्रन्थों का पारायण करते हुए ही और गुरु की आज्ञापालन करते हुए ही इस जैहिक लोक का त्याग किया हो ! सोमनाथ यात्रा राजा कुमारपाल ने जब सोमनाथ की यात्रा की तो गुरु को भी साथ में चलने का आमन्त्रण दिया । हेमचन्द्र ने सहर्ष स्वीकार किया और कहा हम तपस्वियों का तो तीर्थाटन मुख्य धर्म है । यात्रा करते हुए सुखासन आदि वाहनों के लिए हेमचन्द्र के अस्वीकार किया और पैदल यात्रा की । राजा ने अत्यन्त भक्ति के साथ सोमनाथ के लिङ्ग की पूजा की और गुरु से कहा कि 'आपको किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो आप त्रिभुवनपति सोमेश्वरदेव का अर्चन करें ।' आचार्य हेमचन्द्रने आह्वान, अवगुण्ठन मुद्रा, मन्त्र, न्यास, विसर्जन आदि स्वरूप, पञ्चोपचार विधि से शिव का पूजन किया तथा 'भव बीजाङ्करजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥' आदि स्वप्रणीत श्लोकों से स्तुति की । कहा जाता है कि उन्होंने इस अवसर पर राजा को साक्षात् महादेव के दर्शन कराए। इस पर कुमारपाल ने कहा कि हेमचन्द्राचार्य सब देवताओं के अवतार और त्रिकालज्ञ हैं । इनका

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