Book Title: Anusandhan 2010 12 SrNo 53
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 155
________________ डिसेम्बर २०१० १४९ विशेषता यह है कि हेमचन्द्र ने 'गृहीतग्राही' और 'ग्रहीष्यमाणग्राही' दो का समत्व दिखाकर सभी धारावाही ज्ञानों में प्रामाण्य का समर्थन कराया है । हेमचन्द्र इन्द्रियाधिपत्य और अनिन्द्रियाधिपत्य दोनों को स्वीकार करके उभयाधिपत्य का ही समर्थन करते हैं । हेमचन्द्र ने जय-पराजय व्यवस्था का नया निर्माण किया है। यह नया निर्माण सत्य और अहिंसा तत्त्वों पर प्रतिष्ठित हुआ है। इसके अनुसार जैन दर्शन जीवात्मा और परमात्मा के बीच भेद नहीं मानता। प्रत्येक अधिकारी व्यक्ति सर्वज्ञ बनने की शक्ति रखता है । अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का इसमें पूर्ण समर्थन किया गया है । प्रमाणमीमांसा में हेमचन्द्र ने पूर्ववर्ती आगमिक, ताकिक, सभी जैन मन्तव्यों को विचार व मनन से पचाकर अपने ढंग की विशद, अपुनरुक्त, सूत्रशैली तथा सर्वसङ्ग्राहिणी विशदतम स्वोपज्ञ वृत्ति में सन्निविष्ट किया है। प्रमाणमीमांसा ऐतिहासिक दृष्टि से जैन तत्त्व साहित्य में तथा भारतीय दर्शन साहित्य में विशिष्ट महत्त्व रखता है । व्याश्रय संस्कृत - व्याश्रय काव्यों में प्रस्तुत संस्कृत व्याश्रय काव्य का स्थान अपूर्व है। इसमें सिद्धहेमशब्दानुशासन अध्याय ७ तक के नियमों, उदाहरणों को दिखाना आवश्यक समझकर सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। दूसरी तरफ चालुक्य वंश का ऐतिहासिक वर्णन भी दिया गया है । जो चालुक्य वंश के इतिहास के लिए स्पष्टता मूल्यवान है । इस काव्य में २० सर्ग और २८८८ श्लोक हैं । द्विसन्धान काव्यों की दृष्टि से यह काव्य अभूतपूर्व है। व्याश्रय प्राकृत - सिद्धहेमशब्दानुशासन के ८वें अध्याय प्राकृत व्याकरण के नियमों को स्पष्ट करने के लिए प्राकृत व्याश्रय काव्य की रचना की गई है। यह ८ सर्गों में विभाजित है। जिसमें ६ सर्ग में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश भाषा के उदाहरण स्पष्ट हैं । दूसरी तरफ महाराजा कुमारपाल जीवनचरित्र वर्णित है । इस प्रकार व्याकरण और जीवनचरित्र का प्रत्येक पद्यों में प्रयोग करते हुए कवि ने इसमें अपार सफलता प्राप्त की है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्य - यह ३६००० श्लोक परिमाण

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