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डिसेम्बर २०१०
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अनुरोध करने पर मेरा नाम बताना । उदयन ने वैसा ही किया । रात्रि को महल पर बिजली गिरी और रानी की मृत्यु हो गई। राजा ने यह विस्मयकारक चमत्कार देखकर आचार्य हेमचन्द्र को गुरु के रूप में स्मरण किया और राज्यसभा में बुलाए । राजा ने उनका सन्मान किया और प्रार्थना की कि 'उस समय आपने मेरे प्राणों की रक्षा की थी और यहाँ आने पर हमें दर्शन भी नहीं दिए, लीजिए अब अपना राज्य संभालिये ।' आचार्य ने उत्तर दिया- 'राजन् ! यदि आप कृतज्ञता के कारण प्रत्युपकार करना चाहते हैं तो भगवान महावीर की वाणी अनेकान्तवाद और अहिंसा का प्रचार-प्रसार करें ।' राजा ने शनैःशनैः उक्त आदेश के स्वीकार करने की प्रतिज्ञा की और अपने राज्य से कुमारपाल ने प्राणीवध, मांसाहार, असत्य भाषण, द्यूतव्यसन, वेश्यागमन, परधनहरण, मद्यपान आदि दुर्व्यसनों का जड़मूल से निषेध कर दिया । अमारिघोषणा करवाई । उसने अपने अधीन १८ प्रान्तों में पशुवध का निषेध कर दिया था । अहिंसा का इतना व्यापक प्रचार किया कि कुमारपाल का जीवन अहिंसामय हो गया। कुमारपाल प्रतिबोध के अनुसार कुमारपाल के आचार-विचार और व्यवहार देखने से तथा हेमचन्द्र के अनन्योपासक होने से कुमारपाल ने जीवन के अन्तिम दिनों में जैन धर्म स्वीकार कर लिया होगा और प्रायः उनका जीवन द्वादशव्रतधारी श्रावक जैसा हो गया होगा । इसीलिए कुमारपाल को हेमचन्द्र स्वयं अपने ग्रन्थों में 'परमार्हत' करते हैं । यह सत्य है कि वह जैन विचारों का पालन करते हुए तन्मय हो गया था और हेमचन्द्र को गुरु मानकर वह उन्हीं के आदेशों का अनुसरण करता था । प्रभास पाटण के भावबृहस्पति विक्रम संवत् १२२९ में भद्रकालि शिलालेख में माहेश्वर नृपाग्रणी कहते हैं और हेमचन्द्र भी संस्कृत व्याश्रय काव्य के २०वें सर्ग में कुमारपाल की शिवभक्ति का उल्लेख करते
कहते हैं कि हेमचन्द्र और कुमारपाल का गुरु-शिष्य जैसा सम्बन्ध था और हेमचन्द्राचार्य के प्रभाव में आकर कुमारपाल ने जैन परम्परा की अत्यधिक उन्नति की थी। अनेक जिनमन्दिर बनवाए । १४०० विहार बनवाए और जैन धर्म को राज्यधर्म बनाया । इसका उल्लेख रामचन्द्रसूरि कृत