Book Title: Anusandhan 2007 12 SrNo 42
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ निवेदन साहित्यनुं सर्जन अने संशोधन आ बे वानां ऊंडी निष्ठा अने सज्जता मागी ले छे. उमाशङ्कर जोशीए लख्युं छे के "माणसनी एक उमर एवी होय छे के ते उमरे जेम तेना चहेरा पर 'खील' थाय छे तेवी ज रीते तेना मनमां सर्जक थवाना कोड जागता होय छे.'' आ धखारामां ज घणा लोको पोताना लेखनने 'सर्जन' समजवा (अने गणाववा) मांडता होय छे. सद्भाग्ये, संशोधन, क्षेत्र, हजी सुधी मोटा भागना लोको माटे शङ्कास्पद बाबत रही होवाथी, आवा धखारानो भोग बनतां बची गयुं छे. संशोधननो विकल्प छे सम्पादन. संयोजन, संकलन, संचय पण तेमां ज समाय. जे लोको पासे सर्जन माटेनी क्षमता तथा अनुकूलता नथी, अने संशोधन परत्वे रुचि नथी, तेवा लोको आ विकल्प पसंद करता जोवा मळे छे. आमां महेनत ओछी अथवा जराय नहि, अने नामकमाणी सर्जक/संशोधक जेटली ज; बल्के घणीवार तो तेथी घणी वधारे. ___ ताजेतरनां वर्षोमां, जैन संघना ज्ञानधननो उपयोग करीने, सम्पादनप्रकाशनना विषयमां घणाबधा जनोए झूकाव्युं छे. पूर्वना एटले के विगत १०० वर्षोना गाळाना विद्वान गृहस्थोए तथा मुनिराजोए, पोताने उपलब्ध टांचां साधनोनी ज सहायथी, मुख्यत्वे पोतानी सज्जता तथा निष्ठाना जोरे ज, असंख्य पुराणा ग्रन्थोनुं सम्पादन तथा प्रकाशन करेलुं छे. ते ग्रन्थो आजे कां तो अप्राप्य छे, कां तो जर्जरित होवाने लीधे उपयोगमां आवे तेवा नथी. तेवा सेंकडो ग्रन्थोनो पुनरुद्धार, पुनर्मुद्रण, आ लोको करेकरावे छे. बेशक, आवो पुनरुद्धार एक उपयोगी कार्य ज गणाय. परन्तु, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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