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October-2007
बाहिर भोग अर्थ जे टीकाकारें कर्यो ते सत्य छे.
ते बहिर्भोग अर्थनें दृष्टान्तथी दृढ करे छे : पदातिभोगवदिति - जेम पालो = सिपाइ भोग छे तेम कोई कहे - अस्मद्भोग्योऽयं पदातिः - आ सिपाई अमारा भोगनो छे एटलें अमारा काममा आवे छे, तेम ते मांस साधुना काममा आव्यो माटे भोग छे, इति = ए प्रकारे, च्छेदसूत्रेष्वपि द्रष्टव्यं = कहेल कारणोथी बहिर्भोगमां मांस लेवानो बृहत्कल्पादि च्छेदसूत्रोंमां पण कह्यो छे.
एवं गृहस्थामन्त्रणादिविधिपुद्गलसूत्रमपि सुगममिति = एम टीकामा दर्शावेल शैली मार्गे करीने गृहस्थ करी आमन्त्रणादिक, तेना विधिनो सूत्रनो तथा पुद्गल जे मांसना सूत्रनो पण व्याख्यान सुगम थयो, इति = ए प्रकारे, एवमादिना = इत्यादि कारणे करीने, च्छेदसूत्राभिप्रायेण = छेदसूत्रोना आशय जाणवें करीनें, ग्रहणेऽपि = बहू हाडकावालो मांस लिवानो होय तो पण, कण्टकादिपरिष्ठापनविधिरपि सुगम = इति कांटदिक परिठववानो विधि पण कहेली शैलीइं सुगम छे इम जाणवो.
श्रीशीलाङ्काचार्ये आ टीका विक्रम संवत् ६७८नी शालमा संपूर्ण करी छे, केम जे तेमने शाकी संवत् ७९८ लिख्या छे ते शाकी राजा विक्रमथी १२० वर्ष पहेलां थया छे. एम आ टीका रचाई १२७८ वर्ष थया, ने आ टीकाथी पेलां आचारांगनी संक्षेप टीका श्रीगन्धहस्तिसूरिकृत इति. ते टीकामिश्र आ टीका तेमने करी छे. तेथी सिद्ध थाय छे के पूर्वे पण जैनी साधु मांसाहारी न हता.
ने ए आचार्य महासत्यवादी हता ए पण सिद्ध थाय छे. केम जे जिनागमोमां एकास्थिक-बह्वस्थिक फलादिक कह्या छे. तेथी ए आचार्य महाशक्तिमान् फलादिरूपे व्याख्या करवा समर्थ छे ते पण असत्यवचनना पापथी डरीने करी नहि, तेथी महासत्यवादी छे ए सिद्ध छे.
ने आ सूत्रनो बालबोध करनार पाशचन्द संवत् १५७२ मा निकलेल, तेने कुल वर्ष ३८३ थया छे, ते जिनोक्त भाव अन्यथा करवाना तथा असत्यभाषीपणाना पापथी नही डरतें फलादिरूप अर्थ कर्यो ते अनर्थ छे.
तस्मान्नमः सत्यवादिने || श्री ।। श्री ॥
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