Book Title: Anusandhan 2007 10 SrNo 41
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 56
________________ October-2007 ५१ विहंगावलोकन उपा. भुवनचन्द्र अनु० ३९मां प्रगट थयेल 'मुनिमाला' नामक प्राकृत कृति 'भरहेसर०' सज्झायनी शैलीमां रचाई छे. 'भरहेसर०' सज्जायनुं एक नाम 'ऋषिमण्डल' पण छे. 'मुनिमाला' अने 'ऋषिमण्डल' ए बे नामोनुं साम्य प्रगट छे. गा. १९मां क(व?)च्छल्लं छे त्यां एवो सुधारो करवानी आवश्यकता नथी. 'कच्छुल्ल' एवं एक नारदमुं नाम छे ज. अहीं 'कच्छ(च्छु)ल्ल' एवो सुधारो करवो पडे. विविधभाषामय कृतिओनी एक परम्परा जैन साहित्यमां सारी पेठे विकसी हती. आवी एक रचना आ अंकमां छे : षड्भाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तव. आमां प्राकृतभाषानो चार श्लोको छे ते मरहट्ठी प्राकृतमां छे. मागधी वगेरे भाषाओ पण प्राकृत ज छे. आ स्तवमां पांच प्राकृत भाषाओ, अपभ्रंश, संस्कृत तथा समसंस्कृत - एम आठ भाषाओनो प्रयोग थयो छे एम कही शकाय. कर्तानी विद्वत्ता स्वयंप्रकाशित छे. टिप्पण होवाथी अर्थबोध सुगम थयो छे. ___'तपागच्छ गुर्वावली स्वाध्याय' ऐतिहासिक सामग्री लेखे उपयोगी रचना छे. _ 'सत्तरभेदपूजा'नो स्तबक श्री शीलचन्द्रसूरि द्वारा सम्पादित थई आ अंकमां छपायो छे. बे टबार्नु संकलन कयुं छे; परंतु बंने भिन्नकर्तृक छे, तो बंने भिन्न ज प्रगट करवा जोइता हता, जेथी बनेनी विशेषता वधु स्पष्ट समजी शकात. मुद्रित पूजामां प्रारम्भे वस्तु छन्द अपाया छे ते अन्य स्वतन्त्र कृतिमाथी लईने त्यां मूकवामां आव्या हशे. पूजाओना अन्ते बोलातां काव्यो अहीं अपायेल प्रतिना पाठमां नथी. तेथी निश्चित थाय छे के काव्यनी प्रथा अर्वाचीन छे. प्रथा शरु थया बाद कोई विद्वान मुनिवरे आ काव्यो अन्यत्रथी (सम्भवतः जैन 'कुमारसम्भव' जेवा महाकाव्यमांथी) लईने पूजाओना अंते जोड्या छे. प्राचीनतर काळमां पूजाओ गेय गीतिकाओने बदले श्लोक/छन्दमां वर्णववामां आवती. सत्तरभेदी पूजाना १७ वस्तुछन्द होय एवी अन्य रचनाओ पण छे. स्नात्रमह तथा १७ पूजाओमां प्राकृत गाथाओ, गान पण कोई तबक्के थतुं हतुं. प्रस्तुत पूजामां प्राकृत गाथाओ छे, ते ए प्राचीन प्रणालिकानो अवशेष छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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