Book Title: Anusandhan 2007 10 SrNo 41
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ २४ मलधारि श्रीराजशेखरसूरिकृता स्याद्वादकलिका ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि स्याद्वाद दर्शन एटले जैन दर्शन. स्याद्वाद ए समुद्र जेवुं एक सर्वांगी विचारदर्शन छे, जे नदीओ जेवां विविध वा अनेक एकांगी दर्शनोने पोतामां समावी लेवानी क्षमता राखे छे. परन्तु तेना मर्मने पकडी न शकनार के पछी पकडवा माटे अनिच्छुक विद्वानोए तेने 'संशयवाद', 'खीचडो' तथा तेवां अनेक नामो वडे ओळख्यो छे. स्याद्वाद सर्व दृष्टिओना स्वीकार तेमज समन्वयमां माने छे. आ वात एकांगी दृष्टिओने मान्य नथी बनती. " आ पण खरुं अने ते पण खरुं ? अथवा ते पण खोटुं अने आ पण खोटं ? आ केम बने ? केम मनाय ? साचुं तो कोई एक ज वानुं होय !" आ छे एकांगी के निरपेक्ष दृष्टि. आमां सापेक्षभावने कोई ज अवकाश नथी होतो. आथी ज सर्जाय छे वाद-विवादरूप मुठभेड. अनुसन्धान- ४१ आ मुठभेडमा दरेक दर्शने पोतानुं मण्डन अने अन्यनुं खण्डन कर्यु, तो साथे साथे, ए सौए 'स्याद्वाद' नुं तो एकस्वरे खण्डन ज कर्यु. आनो जवाब आपवानुं अनिवार्य बन्युं त्यारे स्याद्वादवादीओए पण खण्डन - मण्डननी प्रक्रिया तथा परिभाषा अपनावीने से मुठभेडमां झुकाव्युं. मूळे तेमनो आशय कोई दृष्टिने के विद्वानने ऊतारी पाडवानो नहि हतो; पण तेमनी दृष्टिमां रहेल निरपेक्ष एकान्त मान्यताने तोडवानो ज हतो. परन्तु कालक्रमे शास्त्रोनी कुस्ती करतां करतां, तेओने पण, सौना नकारात्मक वलणनो चेप लाग्यो होय, तेम कल्पी शकाय छे. Jain Education International एकान्त दर्शनोनुं खण्डन अने अनेकान्तनुं मण्डन करनारा अनेक जैन आचार्यो थया छे, तेमां आ. राजशेखरसूरिनुं नाम पण आगली हरोळनुं छे. मूळे पोते समन्वयवादी होवानुं तो, तेमणे 'षड्दर्शनसमुच्चय' जेवो समन्वयात्मक ग्रन्थ रच्यो छे ते थकी ज, पुरवार थाय छे. छतां वादीओना निरंकुश आक्रमणने खाळवा तेमणे 'स्याद्वादकलिका' जेवा ग्रन्थनुं निर्माण करवुं पड्युं होय तो ते बनवाजोग छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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