Book Title: Anusandhan 2007 10 SrNo 41
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-४१
चिलाइपुत्र मिलिउ चोरह सत्थि, मारी स्त्री मस्तिक लिउ हत्थि; पूछिउ धर्म सुजाणे कहिउ, इणी परि झूझी कर्म सिउं भयु(भडिउ ?)९ सेठि सुदरसिण कासगी रहिउ, अंतेउरि ऊपाडी लीउ; राणी जोउ प्राणविनाण, सेठिई तिहानि मेहल्युं माण. १० सेठि सुदरसिण खरु सविचार, सील जि(नि?)समकित जस हथीयार; मनह माहि समरइ नवकार, जोइ न वणिक सउ झूझार. ११ बाहूबलि अभिनवु झूझार, कर्म अनमूली कीधा छार; वरस दिवस सोइ कासगि रहिउ, कर्म अनमूली शिवपुरि गयउ. १२ अइमतु बेडी जिम तरि, जलह माहि-बाहिरि सोइ फिरइ; पणग-दिग-मट्टी ऊचरि, अठवरीसु केवल वरि. १३ वयरसीह जिनशासणि सार, लहुया लगइ पुण अंग इग्यार; जातमात्र जिणि मोह जीपिउ, जोइ न बालक किम झूझिउ. १४ अवंतीनयर अवंतीसुकुमार, गुरुवयण सांभली विसाल; नलनीगल विमाण जव दीठ, रयणमाहि सोइ जई बईठ. १५ जोइ न झूझइ साहसधीर, दशणभद्र चालिउ वंदणि वीर; सरपिति चालिउ कोपि चडी, तीणइ जीतु एकइ चापडी. १६ क्षमाखण्ड करि ग्रहिउ वीर, कूरगड जोवउ साहसधीर; वार करंता कर्म शवि नीठ, मुगतिपुरी सोइ जई बईठ. १७ वंकचूल बंकु झूझार, क्रोध हणिउ जीणइ खडाग]प्रहारि; अणजाण्या फल शवि परिहरी, संसारसमुद्र गयउ लीला तरी. १८ राजगृहनयरि रोहणिउ चोर, कर्म उनमूली कीधां दूरि; गाथा एकमांहि प्रतिबोध, इणी परि झूझइ रोहणीउ योध. १९ कालकसूरि प्रभावक हुआ, सरसति कारणि ते झूझूआ; गरदभिलनउ जेणिइ फेडिउ ठाह, जिणशासण मांहि करिउ ऊछाह. २० बीजा हुआ कालिकसूरि, सष्य प्रमाद सवि कीधा दूरि; स्वामि शीमंधर करि वखाण, सुरपिति वंदणि आविउ पिठांण २१
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