Book Title: Anusandhan 2007 10 SrNo 41
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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October-2007
४३
नीकळी इन्द्रगोप तरीके साथे ज जन्म्या. पछी ते बधा ज भरतना हाथीना पग नीचे कचडाई मरी गया अने भरतना ज पुत्रोरूपे जन्म पाम्या. पछी तेओए साथे ज दीक्षा लीधी अने ट्रॅक समयमां ज तप व. कर्या विना मोक्ष पाम्या.
आ कथामां निगोदत्व अने मनुष्यत्वनी वच्चे इन्द्रगोपनो जन्म बताव्यो ते सहेतुक छे. दिगम्बर कर्मशास्त्रो प्रमाणे नित्यनिगोदनो जीव संज्ञी पंचेन्द्रिय थई पछी जो मनुष्यत्व पामे तो ते, ते ज भवमां मोक्षे जई शके छे. इन्द्रगोप जो के संज्ञी पंचेन्द्रिय नथी छतां तेने तेवो मानी लेवामां आव्यो छे. कारण के श्वेताम्बर तथा दिगम्बर - बन्ने कर्मशास्त्रो प्रमाणे बेइन्द्रिय - तेइन्द्रियचउरिन्द्रिय जीवो मनुष्य बने तो पण मोक्ष न पामी शके.
धवला टीकामां वीरसेन कहे छे के, "वर्धनकुमारो नित्यनिगोदमांथी नीकळी, मनुष्यत्व पामी, क्षायिक 'सम्यक्त्व पाम्या हता." परन्तु तेनाथी आगळ जेओ कंइ कहेता नथी.
उपसंहार
कर्मसिद्धान्तोने बहु महत्त्व न आपीए तो मरुदेवीनी अथवा भरतना ९२३ पुत्रोनी कथा - 'निगोदथी मोक्ष' माटे बधां ज सोपानो जरूरी नथी ते देखाडे छे.
मरुदेवी, चरित्र ध्यानार्ह छे कारण के तेमां एक ज जीवनी कोई पण बाह्य परिस्थिति विना प्रगति-सिद्धि थई छे, जे आश्चर्यरूप छे, ज्यारे भरतना पुत्रोनी प्रगति आश्चर्यरूप नथी.
___यामनीय-दिगम्बर कथाओ पण ध्यानार्ह छे. निगोदमां एक साथे अनन्तवार जन्म-मरण करी इन्द्रगोपना जीवो तरीके साथे ज जन्म, हाथीना पग-नीचे दबाई साथे ज मरण, फरी भरतना पुत्रो तरीके साथे ज जन्म-साथे ज दीक्षा अने अल्पकाळमां साथे ज मोक्ष, जाणे सामूहिक यात्रा !!
आवां चरित्रो सांभळी लोको तो ऋषभदेव-महावीर व.ना जीवोनी जेम घणा भवोनुं भ्रमण पसंद न करतां मरुदेवी व.नी जेम मोक्षे जवू पसंद करे. पण आ पसंदगीनी वात नथी.
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