Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 220
________________ 213 ए दृष्टिसंपन्न विद्वान अने मारा प्रत्ये विशेष लागणी. बधुं ज शब्दश: वांचे, सुधारे, सरस आकार मळे, सौष्ठव मळे ए रीते गोठवे. अंते काम पूर्ण थयु. वाईवा पूर्ण थतां भायाणीसाहेब कहे : 'लो लग्न करावी आप्यां. पण छोकरां थाय त्यारे जं लग्ननी पूर्णता.' एमनी वात में वधावी अने अध्ययन-अध्यापन साथे अभ्यास आगळ वधारवानी नेम राखी. नोंधरूपे पुष्कळ सामग्री हती. संदर्भ हता. तैयार इन्डेक्स हती. कामकथाना बे भाग प्रगट थया अने प्रो. जयंत कोठारीए जेने कलंगी समो गणाव्यो ते अभ्यासनिबंध तैयार थयो, अन्य निमित्तो पण भायाणीसाहेबे पूरां पाड्यां ने काम सतत चालतुं ज रह्यु, एमना ज प्रत्यक्ष मार्गदर्शनमां. परंतु गुजरात कॉलेज सरकारी. मोटो हाउ बदलीनो. एमां डायरेक्टर बदलाय एटले कहे, बीजे तो त्रण के पांच वर्षे बदली थाय अहीं दशपंदर वर्षथी एक स्थळे ? डॉ. यशवंत गुलाब नायक, प्रो. जे.बी.शांडिल्य अने प्रि.बी.जे. त्रिवेदी जेवा आचार्य समजावे के अमदावादमां अनेक स्थानिक खानगी कॉलेजनी वच्चे गुजरात कोलेजनां नामकाम टकाववानां छे. एने आम बदलीथी आवता अध्यापकोथी न चलावाय. खूब मथामणे पछी बदली अटके. परंतु माथे बदलीनी तलवार लटकती ज रहे. प्रो. नटुभाई राजपरा आ कारणे ज पाठ्यपुस्तक मंडळमां गुजराती विषयना निष्णात तरीके गयेला. एमने फरी धर्मेन्द्रसिंहजी कोलेज राजकोटमां जवानुं गोठवायु. मने थयु के हुं पण पाठ्यपुस्तक मंडळमां डेप्यूटेशन पर जाउं तो अमदावादमां स्थिर रही शकाशे. परंतु भायाणीसाहेबने पूछ्या वगर आवो निर्णय केम थाय? हुं नटुभाई राजपराने लईने मळवा गयो ने वात करी तो भायाणीसाहेब गुस्से थया ने नटुभाईने ज कह्यु : 'आ तमारो विद्यार्थी छे ने तमे एने सलाह आपता नथी ? तमे फरी अध्यापक रहेवार्नु ज पसंद कर्यु ने ! आने तो हजु लांबी कारकिर्दी छे. अध्ययन अने अध्यापन छोडीने आवा वहीवटी काममां पडवू छे ? त्यां तमारां ज्ञान-अनुभवनो शुं विकास थशे ?' में कह्यु : ‘परंतु बदली...' 'तो शुं ?' ए बोल्या : 'भूज जवू पडेने ? जावं. पण आ क्षेत्र न छोडवू !' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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