Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ 264 एटलो ज रह्यो. भायाणीसाहेबने तमे कोई पण प्रश्न पूछो तो एमनी पासे जवाब होय. तात्कालिक जवाब न होय तो कहे के आजकालमां जोईने कहीश. ओमने माटे कोई व्यक्ति नानी नहीं के मोटी नहीं. अजाण्यो माणस पण पत्र लखे तो एमनुं जवाबपोस्टकार्ड तैयार ज होय. भजगोविन्दम्मा गोविन्द शब्द शुं काम के गोपीगीतनो छंद कयो.... तो एने माटे पण आपणा प्रश्ननुं निराकरण करी आपे. प्राकृत संस्कृतनी हजारो पंक्तिओ अमने कंठस्थ. मुंबईमां तो ए हता त्यारे तो महेफिल ज हती. अमदावाद गया तो अमारा सौने माटे एक खालीपो हतो. एवं न हतुं के मतभेद न हता पण चर्चाने अंते कोई कडवाश नहीं पण नरी संवादिता. प्रारंभमां मारी कविसंमेलननी प्रवृत्ति माटे ए थोडाक नाराज हता पण पछी एक दिवस मने कहे के मने लागे छे के तमे जे काम करो छो ते योग्य छे अने करवा जेवं छे. कवितानो संबंध कान साथे छे. मुद्रणकळाने लीधे काव्यनां पुस्तको प्रगट थाय ए बराबर छे पण कविताने प्रजा सुधी लई जवी ए पण एक धर्म छे. मने अवारनवार पत्रोमां टांकता पण खरा के तमे प्रवृत्तिओ भले करो पण तमारी तबियत पहेलां. ओमने माणसमात्रमा जीवंत रस अने अंदरनी ऊंडी निसबत. बाळको साथे ओ बाळक जेवा थई जाय. मने एक प्रसंग बराबर याद छे. मारी दीकरी मिताली पांच-छ वर्षनी हती. मारे घरे ए सहकुटुंब रह्यां हतांपाटकरना घरमां. मितालीने श्लोको शीखवता. पण जे दिवसे भायाणीसाहेब घर छोडीने गया त्यारे मिताली धोधमार रडी हती. बुद्धिना बळे बौद्धिकोनां हृदय जीतवा ए कदाच आसान छे पण बाळक, हृदय जीतq ए एटली सहेली वात नथी. गुजराती अने अनेक भाषानी कहेवतो कहे. प्राकृत, अपभ्रंशना श्लोको पण कहे. महुवानी वातो पण करे. नाणावटी होस्पीटलमां हता त्यारे छेल्लो पत्र कदाच ओमणे गुलाबदास ब्रोकरने लख्यो. सतत कार्यशील माणसने निष्क्रिय थर्बु पोषाय नहीं. एमनुं शरीर भाग्युं हतुं पण मन तो एवं ने एवं कुशाग्र. ईश्वरमां नहीं मानता होय पण सृष्टिना अने मनुष्यना ऐश्वर्यमां मानता. छेल्ले छेल्ले एमणे हरीन्द्रनाथ चटोपाध्यायना अंग्रेजी काव्यपुस्तकनो अनुवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292