Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 269
________________ 262 एंसी वर्षनी उंमरे हजु पण सतत काम, काम अने काममां परोवायेला रहेता भायाणीदादाने जोईने आपणने स्वाभाविक ज नवाई लागे छे. परंतु ओमने आ वातनी जराय नवाई लागती नथी. ए कहे छे : 'हुं नसीबमां मानतो नथी. भाग्यमां हशे तो थशे अम मानीने हाथ पर हाथ धरीने बेसी रहेतो नथी. हुं तो पहेलेथी ज पुरुषार्थ करतो आव्यो छु अने हजु पण करतो रहीश...' मात्र पुरुषार्थना जोरे ज जीवनमा आगळ वधेला विद्वान हरिवल्लभ भायाणीए राष्ट्रीय अने आंतरराष्ट्रीय स्तरे सन्मानो मेळव्यां छे. आजना दिवसमां देशपरदेशना विद्यार्थीओ अने संशोधको अमनी पासेथी मार्गदर्शन लेवा आवे छे. विदेशी युनिवर्सिटीओ एमनी ज्ञाननी गंगानो लाभ लेवा माटे निमंत्रण आपे छे. छतां भायाणीदादाने पोतानी विद्वत्ता माटे नथी अभिमान के नथी अहंकार.... प्राकृतनां प्रूफ जोतां जोतां ए साहजिकताथी कही दे छे : "मारामां आगळ वधवानी क्षमता हती तेम बीजाओमां पण हशे. परंतु मने मुनशीजी अने मुनि जिनविजयजी जेवा विद्वानोनुं मार्गदर्शन मळ्युं एटले आ कक्षाए पहोंची शक्यो छु. बाकी महुवा जेवा गामडागाममा रहेतो एक दरिद्र छोकरो .संशोधक अने साहित्यकार बनी शके एवी तो कल्पना पण क्याथी करी शकाय ?' (प्रेषक : उत्पल भायाणी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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