Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
267
पूर्व - पश्चिमनो द्वन्द्व अभ्यासीओने आत्यंतिक वलण पर लई जतो हतो त्यारे भारतीयताना आग्रही होवा छतांय पश्चिमनी पायानी संज्ञाओ अने सैद्धांतिक विचारणाओ आत्मसात् करीने पाश्चात्य अने पौर्वात्य धोरणो वच्चे समन्वयवादी अभिगम भायाणीसाहेबे पसंद कर्यो हतो.
आथी ज एक बाजु प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन गुजराती विषयक साहित्यना अध्ययन - संशोधनना ग्रंथो भायाणीसाहेबे आप्या तो सामे छेडे एमना अतिविख्यात विवेचनग्रंथ 'काव्यमां शब्द', अने 'काव्यव्यापार' जेवामां फोर्म, कन्टेन्ट, ईमेज, सिम्बोल, ओब्सर्ड, जेनर, एन्टी नोवेल वगेरे संज्ञाओनी ऊंडी समज भायाणीसाहेबे स्पष्ट करी हती.
आम, साहित्य पदार्थना अर्थघटन, विवरण अने विश्लेषण से साहित्य अने कळाना साचा विवेचन अने मूल्यांकनना अनिवार्य मूळभूत अंग तरीके होवानी पायानी परिपाटी भायाणी साहेबे रची आपी हती.
विविध भाषाओना ऊंडा अभ्यासी होवा उपरांत महान व्युत्पत्तिशास्त्री होवाने कारणे शब्दने यौगिक अर्थमां पामवामां तेमज भावकोने पमाडवामां तेओ छेवट सुधी प्रवृत्त रह्या हता.
प्राचीन साहित्यना आ अभ्यासीओ लाभशंकर ठाकर, गुलाम मोहम्मद शेख, नलिन रावळ अने सितांशु यशश्चन्द्र जेवा आजना सर्जकोनी कृतिओने पण योग्य परिप्रेक्ष्यमां मूलवी ने एनो आस्वाद कराव्यो हतो.
भायाणीसाहेबना साहित्यव्यासंगनो व्याप प्राचीनथी समकालीन सुधीनो
रह्यो हतो.
पश्चिमना उत्तम साहित्यसिद्धान्त - विचारकोना केटलाक अद्भुत लेखोना शब्दश: भाषांतर आपवानुं अभूतपूर्व कार्य एमणे कर्यं हतुं.
प्राकृत, अपभ्रंश विषयक - 'संदेशरासक', (मुनि जिनविजयजी साथे), पउमचरिउ, दाहिलकृत अपभ्रंश व्याकरण, स्टडीझ इन हेमचन्द्रस देशीनाममाला, शामळकृत मदनमोहना, त्रण प्राचीन गुर्जर काव्यो, शामळकृत रुस्तमनो सलोको, शामळकृत सिंहासन बत्रीसी, प्रेमानंदकृत दशमस्कंध ( उमाशंकर जोषी साथे), वाग्व्यापार, सुबोध व्याकरण, शब्दकथा, अनुशीलनो, काव्यनुं संवेदन, काव्यमां शब्द, व्युत्पत्तिविचार काव्यव्यापार, जातककथाओ, आधुनिक विज्ञान अने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292