Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 267
________________ 260 बारथी वधु भाषामा अर्थ आपेला. आ कोशथी हुं प्रभावित थई गयो अने मांथी प्रेरणा लईने 'वाग्व्यापार' ग्रंथ लख्यो. ' पहेलुं पुस्तक प्रगट थया पछी अत्यार सुधीमां हरिवल्लभ भायाणीनां लगभग सित्तेर पुस्तको प्रसिद्ध थई चूक्यां छे. आ पुस्तकोनुं विविध विभागोमां वर्गीकरण करी शकाय दा.त. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन गुजराती, भाषाविज्ञान अने व्याकरण, लोकसाहित्यविषयक अध्ययन अने लोकगीत संग्रह.... आमांनां केटलांक पुस्तको पर नजर करीए. लीलावतीसार, तारागण, अपभ्रंश लेंग्वेज एन्ड लिटरेचर, दशमस्कंध, मुक्तकमाधुरी, ऋचामाधुरी, मुक्तकमंजरी, भाषाविमर्श, लोकसाहित्य: संपादन अने संशोधन, जैन धर्म : अतीत अने वर्तमान, गोकुळमां टहुक्या मोर हरि वेण वाय छे रे हो वनमां..... 'आ छेल्लुं पुस्तक वैष्णवोमां परंपरागत रीते गवातां धोळ काव्योनुं छे. मीरां, नरसिंह महेता अने अन्य भक्तकविओ द्वारा रचित भक्तिगीतोने धोळ काव्यो कहे छे.' भायाणीसाहेब धोळ परंपरानो अर्थ समजावीने 'हरि वेण वाय छे रे...' काव्यसंग्रहनी पूर्वभूमिका समजावे छे : 'आजथी लगभग नव वर्ष पहेलां मालीझो नामना विदेशी संशोधके धोळकाव्यो पर रिसर्च पेपर तैयार करेलुं. ए वखते मने थयुं के हुं तो धोळपरंपरामां ऊछरेलो छु. जो एक विदेशी वैष्णवोनी धोळपरंपरा विशे संशोधन करी शके तो एक वैष्णव थईने हुं ए काम शा माटे न करी शकुं ?' त्यार पछी हरिवल्लभे परंपरागत धोळकाव्यो विशे संशोधन करवानुं शरु कर्यु. आ संदर्भमां वात करतां ते कहे छे : 'मारां दादीमाने तो धोळ परंपरानां दोढसो जेटलां काव्यो मोढे हतां महुवामां ए रोज सांजे सत्संग करतां त्यारे धोळकाव्यो गातां. बाळपणमां में ओमनी पासेथी ए गीतो सांभळेलां. धोळकाव्यो विशे संशोधन करवानुं शरु कर्यं त्यारे एमांनां केटलांक गीतोनुं मुखडुं याद हतुं तो केटांकना अंतरा .... एकाद-बे अपवादने बाद करतां आख्खेआख्खां गीतो मने याद नहोतां. ते वखते दादीमा पण हयात नहोतां. एटले मुश्केली ए वातनी हती के अधूरां गीतो पूरा कई रीते करवां ?' आ सवालना जवाबमां अमणे एक उपाय शोधी काढ्यो अमने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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