Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 241
________________ 234 तेमणे करी होय के कशा परत्वे ओमणे पोतानी निर्णायक असंमति दर्शावी होय, अ अक्कड थईने ऊभा रह्या होय अवुं विरल अपवाद रूपे ज बन्युं छे. सामान्य रीते, संघर्ष करवानी जरूर होय त्यां ए मूंगा रहीने खसी जाय छे के समाधान स्वीकारी ले छे अने मित्रो तथा स्नेहीओने तो ओ खास साचवी ले छे. ओमने अगवड पडे अवुं से भाग्येज करे छे. केटलीक बाबतो ओवी होय छे के जेमां भायाणीसाहेबनो अवाज ज निर्णायक बनी शके, अ आग्रह राखे तो इष्ट परिणाम लावी शके, भले ओ माटे थोडोघणो क्लेश • वहोवो पडे. ए नथी थतुं ने खोटा, खराब निर्णयोमां ए भागीदार थता देखाय छे. तेथी मारा जेवा लडायक माणसने अफसोस रहे छे, पण बीजी बाजुथी हुं जोई शकुं हुं के भायाणीसाहेबना स्वभावमां रहेली आ क्लेशभीरुता अने समाधानशीलताओ एमने विवादास्पदतानी सीमानी बहार राख्या छे, व्यापक रीते स्वीकार्य बनाव्या छे अने बहोळा संबंधो संपडावी आप्या छे, जेने कारणे भायाणीसाहेब अनेक विद्याप्रवृत्तिओना प्रवर्तक अने सहायक बनी शक्या छे ने अमने पोताने हाथे तथा ओमनी प्रेरणा ने सहायथी थयेलां विद्याकार्योनो सरवाळो घणो मोटो थाय छे. मारा अफसोसनुं जाणे साटुं वळी जतुं होय ओम मने लागे छे. भायाणीसाहेब संघर्षभीरु भले होय, अ वादप्रतिवादना भीरु नथी. ओक स्वतंत्र विचारकनुं तेज ओमनामां छे. ज्ञानगोष्ठिओमां से प्रश्न करता, प्रतिवाद करता, पोतानुं प्रतिपादन रजू करता अने आ बधुं उग्रताथी करता जोवा मळे छे. ओमनो अवाज मोटो ने आग्रही बनी जाय ने मोढुं लालचोळ थई जाय. सामो माणस डघाई जाय, मूंगो थई जाय. डॉ. उपेन्द्र पंड्याए अक वखत पोतानो आवो अनुभव मारी पासे वर्णवेलो. में कह्युं के भायाणीसाहेब लालपीळा थाय अनाथी आपणे मूंझाई न जवुं, आपणे पण सामे उग्र थवुं अने आपणी वात जोरशोरथी मूकवी. भायाणीसाहेबनो तो ज्ञानावेश होय छे. आपणे सामा थईओ के हसी लईओ एटले थोडीवारमां ने शमी जतो होय छे. आपणी वातनुं तथ्य स्वीकारी ले, आपणने अधवच्चे आवी मळे के उदारताथी मतभेदने मान्य करी ले. भायाणीसाहेब ऊहापोहमां रस लेनारा छे, कोई मतप्रवर्तक नथी. पश्चिममां नित नवा जन्मता वादो, जे कोईवार तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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