Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 242
________________ 235 परस्पर छेद उडाडनारा होय छे, तेमां रस लेनार माणस बद्धमत तो न ज होई शके ने ? भायाणी साहेब अखंड विद्योपासक छे. चंद्रकळाबहेने अमने घरनी जवाबदारीओमांथी मुक्त राखीने विद्योपासनामां रच्यापच्या रहेवानी सगवड करी आपी छे. पण ओ शुष्क संशोधक नथी के नथी विद्याभ्यासजड. रसिकता अमनामां भारोभार रहेली छे. संस्कृत-प्राकृत मुक्तकोनी मजा भायाणीसाहेब पासेथी ज माणवा मळे. आ मुक्तकोना रसाळ अने छटादार अनुवादो करवा ओ ओमनो नवराशनी पळोनो विनोद छे. प्राकत कथाओनी रसलहाण गुजरातीमां करवा- पण अमने गमे छे. थोडांक सुंदर स्मृतिलेखो अमणे लख्या छे अने क्यारेक गंभीर वात पण एमणे नर्ममर्मकटाक्षथी कही छे. भायाणीसाहेब संशोधक न थया होत तो सर्जक अवश्य थया होत अम आपणने लागे. भायाणीसाहेब ठठ्ठामश्करीमा रस ले, गपसपमां गूंथाय अने निंदारसनोये अमने निषेध नथी. पूरुं मानवीय व्यक्तित्व छे. अमना हास्यनी तो ओवी छोळो उछाळे के अभ्यास अने अट्टहासनो आ मेळ आपणने विधातानु कोई विस्मयकर्म लागे. भायाणीसाहेबनो ते खरेखरो विद्याविनोद. माटे ज 'व्यासंग' अर्पण करतां में लख्युं हतुं : आपनो घडीक संग. ओ ज तो केवो मोजभरेलो विद्यानो व्यासंग घडीक संग ज विद्यानो व्यासंग बने अने ते पण मोजभरेलो ते भायाणीसाहेब पासे ज. पण ओ बने भायाणीसाहेब साथेनी अनौपचारिक गोष्ठिमां ज. औपचारिक व्याख्यानमां क्यारेक व्यंगविनोदनो तणखो झरे, पण सामान्य रीते मे भारेखम रहे. वर्गशिक्षण पण अमनु औपचारिक अने शुष्क गणाय तेवं. वीगतो-विश्लेषणोथी खचित अने अमनुं भरेलुं चित्त जाणे सहजपणे ठलवातुं लागे. केटला विद्यार्थीओ, चित्त अमां परोवातुं हशे अने भायाणीसाहेबनो ज्ञानधोध झीलवा से शक्तिमान थता हशे से विशे शंका रहे छे. अम लागे छे के भायाणीसाहेबना मनमां पण असंतोष रहेतो हशे अने ओमणे अध्यापन, काम वहेलुं छोडी दीधुं अमां आ स्थितिओ भाग भजव्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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