Book Title: Anusandhan 2001 00 SrNo 18
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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246 एक पंक्ति हती- 'भोगी भमर कमलह कोशि, थूलभद्र लीना त्यंबर/त्युंबर कोशि.' बे प्राप्त हस्तप्रतोमां मळता 'त्यंबर/त्युंबर' शब्दनो अर्थ बेसाडवा कोशोमां हुं घj भटकेलो, पण व्यर्थ. भायाणीसाहेबना हाथमां आ पंक्ति मूकी अने एक क्षण-एक ज क्षण - विचार करीने एमणे का, 'व्यंबर". 'व्यंबर' एटले निर्वस्त्र. आबाद बेसी गयुं- "स्थूलभद्र निर्वस्त्र कोशामां लपाया." बन्ने प्रतोमां मळतो पाठ सुधारवानो थतो हतो, पण एवं आ कृतिमां अन्यत्र पण पूरी आधारभूत रीते करवानुं थयुं हतुं- 'चालिष्ट', 'बालिष्ट' ('ओशीका') करवानुं थयुं हतुं. भायाणीसाहेबने नकामी तकलीफ आप्यानो डंख मने न रह्यो.
भायाणीसाहेब दिवंगत थयाना समाचार आव्या पछी बीजे ज दिवसे एक कृतिमां एमने पूछवा जेवो शब्द आव्यो. पण आ पंखीने हवे ए वडलानी डाळनो आश्रय नहोतो ओनो एक विषादभर्यो अहेसास थयो. ए अहेसास हवे जिंदगीभर थतो रहेवानो.
१९ नवेम्बर २००० (नवनीत-समर्पणमांथी साभार)
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