Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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वस्तु
लीइ दिक्षा लीइ दिक्षा कुंयर जंबू आठ कन्या पोता तणी । माय बाप पणि तस जाणुं । पांचसयाशिडं प्रभवु ऋषभदत्त धारणि वखाणुं । सोहम्म स्वामी स्वामी स्वहथिं संयम दीइ मुनीस । पांचसया ऊपरि वली व्रत लि अठावीस ॥ ४८ ॥
ढाल ५
राग - देसा
( ढाल : आषाढभूतिना रासनुं ।) मारग अति उतावलु ए सोहम्म स्वामी वहिरता ।
बूझवर बहूजीव दया दान ते भाखता । तपीया अती ॥ ४९ ॥ आंचली ।
सोहम्म स्वामी मुनिवरु गुणनुं भंडार
जस सोभागि दीपता पंचमा गणधार ॥ ५० ॥ सो०
तेजि दिनकर किंकरु समचुरस संठाण ।
वज्रऋषभ संघयण छइ सुस्वर करइ वखाण ॥ ५१ ॥ सो० रूपि रति हारीउ वदनं अरवंदा
वाणी अमृत आगली सुख सोभा कंद (दा) ।। ५२ ।। सो० ।
अचल मेरु तणी परि सायर पि गंभीर ।
नीरदनी परि गाजतु गिरुउ वडवीर ॥ ५३ ॥ सो०
गाम नगर पुर पाटणि कांइ नहीं पडिबंध ।
गज गति हींडइ मलपतु रूयडा दो खंध ॥ ५४ ॥ सो०
क्रोध मान माया नहीं नहीं लोभ लगार ।
रिंदय छइ निरमल जल समुं चारुप (वारु ए) अणगार ॥ ५५ ॥ सो०
शमरस सागर सुंदरु दयावंत अपार ।
कूरमनी परि गोपव्यां सवे इंद्री सार ॥ ५६ ॥ सो०
सात हाथ देह भलु कनकवर्ण अपार ।
मुनिवर वंदिं परवऱ्या महीयल करइ विहार ॥ ५७ ॥ सो०
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