Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 90
________________ 85 वस्तु लीइ दिक्षा लीइ दिक्षा कुंयर जंबू आठ कन्या पोता तणी । माय बाप पणि तस जाणुं । पांचसयाशिडं प्रभवु ऋषभदत्त धारणि वखाणुं । सोहम्म स्वामी स्वामी स्वहथिं संयम दीइ मुनीस । पांचसया ऊपरि वली व्रत लि अठावीस ॥ ४८ ॥ ढाल ५ राग - देसा ( ढाल : आषाढभूतिना रासनुं ।) मारग अति उतावलु ए सोहम्म स्वामी वहिरता । बूझवर बहूजीव दया दान ते भाखता । तपीया अती ॥ ४९ ॥ आंचली । सोहम्म स्वामी मुनिवरु गुणनुं भंडार जस सोभागि दीपता पंचमा गणधार ॥ ५० ॥ सो० तेजि दिनकर किंकरु समचुरस संठाण । वज्रऋषभ संघयण छइ सुस्वर करइ वखाण ॥ ५१ ॥ सो० रूपि रति हारीउ वदनं अरवंदा वाणी अमृत आगली सुख सोभा कंद (दा) ।। ५२ ।। सो० । अचल मेरु तणी परि सायर पि गंभीर । नीरदनी परि गाजतु गिरुउ वडवीर ॥ ५३ ॥ सो० गाम नगर पुर पाटणि कांइ नहीं पडिबंध । गज गति हींडइ मलपतु रूयडा दो खंध ॥ ५४ ॥ सो० क्रोध मान माया नहीं नहीं लोभ लगार । रिंदय छइ निरमल जल समुं चारुप (वारु ए) अणगार ॥ ५५ ॥ सो० शमरस सागर सुंदरु दयावंत अपार । कूरमनी परि गोपव्यां सवे इंद्री सार ॥ ५६ ॥ सो० सात हाथ देह भलु कनकवर्ण अपार । मुनिवर वंदिं परवऱ्या महीयल करइ विहार ॥ ५७ ॥ सो० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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