Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 125
________________ 120 सिद्धांत ज स्वीकारवो पडे. एम बन्ने संप्रदायना प्राचीन-अर्वाचीन विद्वानोए जे भाषा स्वीकारेली छे, तेनो छेद उडाडवो अने नवी ज वातने अनेकांतना नामे मानवी-ए कोई रीते वाजबी नथी. वधुमां तेमणे ओम पण कह्यु के केटलाक विद्वान मित्रो "नरो वा कुंजरो वा"ना सिद्धांतमां मानता जणाय छे. अहीं आवे तो अहींनी हा, ने त्यां जाय तो त्यां पण हा. आवी पद्धति तेमने विद्वान भले ठरावती होय, पण तेओ एकेडेमिक माणस तो न ज गणाय. एमनी श्रद्धेयता तो न ज स्वीकाराय. आवा मित्रोने मारे कहेवू छे के तेमने शौरसेनीनो पक्ष ठीक लागे तो तेओ ते ज स्वीकारे पण बेवडी नीति तो न ज सखे. अंतमां अध्यक्षश्रीना उपसंहार साथे संगोष्ठी सुखद अने संवादी वातावरणमां समाप्त थई हती. संगोष्ठीना आयोजनमां डॉ. के. आर. चन्द्रे तथा डॉ. जितेन्द्र शाहे सक्रिय महत्त्वपूर्ण भाग भजव्यो हतो. बे दिवस विद्वानोना भोजनादिनो प्रबंध श्री वक्तावरमल बालर, वंसराज भंसाली, नारायणचंद महेता वगेरेओ को हतो, तो निवासादिनो प्रबंध शेठ हठीसिंह केसरीसिंह ट्रस्टे कर्यो हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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