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हतो. तेरापंथना समणी चिन्मयप्रज्ञा पण आमां भाग लेवा खास आव्यां हतां.
__ संगोष्ठीनी प्रथम बेठक एक जाहेर समारोह रूपे रही. आ समारोहमां अतिथिविशेष तरीके जाणीता जैन अग्रणी शेठ श्रेणिक कस्तूरभाई तथा आंतरराष्ट्रीय पुस्तक प्रकाशक मोतीलाल बनारसीदास (दिल्ही)ना श्री नरेन्द्रप्रकाश जैननी विशेष उपस्थिति रही. उपरांत मुंबईथी श्री प्रताप भोगीलाल पण हाजर रह्या हता. समारोहनुं यशस्वी संचालन डॉ. कुमारपाळ देसाईए कर्यु. आ समारोह दरम्यान डॉ. के. आर. चंद्रे दस वर्षना कठोर परिश्रम द्वारा भाषिक दृष्टिए पुनः सम्पादित "आचारांग-प्रथम अध्ययन" नामना ग्रंथ- विमोचन पंडित दलसुखभाई मालवणियाना वरद हस्ते थयु. उपरांत अन्य पांच ग्रंथो विमोचन पण जुदा जुदा महानुभावोना शुभ हस्ते थयु.
बपोरे संगोष्ठीनी प्रथम बेठक मळी जेना अध्यक्ष स्थाने बहुश्रुत इतिहासविद तथा स्थापत्यविद डॉ. मधुसूदन ढांकी बिराज्या. आ बेठकमां चार विद्वानोए पोताना शोधपत्रो वक्तव्य रूपे रजू कल्. संगोष्ठीनी विशेषता ए रही के प्रत्येक वक्तव्य बाद श्रोतावर्ग तथा विद्वानो द्वारा मार्मिक तथा तात्त्विक चर्चा-प्रश्रोत्तरी थती, वक्ता द्वारा तेनो जवाब अपातो अने छेवटे अध्यक्ष तेनुं मधुर समापन करता, पछी बीजुं वक्तव्य थतुं. आ कारणे संगोष्ठी, वातावरण रसभर्यु, जीवंत तथा ताकिक बनी रह्यु.
ता. २८ अप्रिलना बीजा दिवसे सवारे संगोष्ठीनी बीजी बेठक विख्यात भाषाशास्त्री डॉ. सत्यरंजन बेनर्जी (कलकत्ता)ना अध्यक्षपदे मळी. आ बेठकमां पांच शोधपत्रो रजू थयां, जेमां डॉ. सागरमल जैन, डॉ. पोद्दार, डॉ. बेनर्जी वगेरेनां शोधपत्रो विशेष ध्यानपात्र तथा नोंधपात्र संशोधनोथी सभर रह्यां.
__ बपोरनी त्रीजी तथा छेल्ली संगोष्ठी- अध्यक्षपद डॉ. सागरमल जैने (बनारस) संभाळ्युं. जैनविद्या तथा भारतीय संस्कृतिना ऊंडा अभ्यासी आ विद्वाने छेल्ली बेठकनुं सरस संचालन कर्यु. आ बेठकमां आ संगोष्ठीना पुरोधा डॉ. के. आर. चन्द्र समेत चार विद्वानोए पोतानां शोध-पत्रो सहित वक्तव्यो आप्या.
संगोष्ठीमां श्वेतांबर मूर्तिपूजक, श्वे. स्थानकवासी, श्वे. तेरापंथ, तेमज दिगंबर मतना विद्वानो उपस्थित रह्या हता तो साथे साथे अजैन विद्वानोनी
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